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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ जीविकार्जनार्थ कुछ लोग मगध से चारण, भाटो का पेशा करते हुए आर्य देशो मे जाते हो, जहाँ उन्हे मागध शब्द से कहते-कहते पीछे उसी अर्थ मे मागध शब्द की रूढि होगई हो। मनुस्मृति मे गिनाए गए ब्रह्मर्षि देशो मे मगध का नाम शामिल नहीं है । वहाँ मागध शब्द का अर्थ वर्ण सकर से है । इस क्षेत्र वासियो ने पुरोहितो और वैदिक देवताओ की सर्वोच्च सत्ता प्राय न के बराबर स्वीकारी थी। इसलिए पुरोहित वर्ग इस क्षेत्र को अपवित्र मानते है और यहां तक कि इस क्षेत्र मे प्राण-त्याग भी पाप गिनते है-'मगह मरे सो गदहा होय' । आज भी मिथिला के ब्राह्मण गगा पार मगध की भूमि में मृत्यु के अवसर को टालते है । श्रौत सूत्रो मे यहां रहने वाले ब्राह्मण को ब्रह्मबन्धु कहते है, जिसका अर्थ जातिमात्रोपेत ब्राह्मण है, शुद्धब्राह्मण नही । आजकल भी यहाँ ब्राह्मण 'वाबाजी' नाम से पुकारे जाते है और किसी काम के बिगड जाने व किसी वस्तु के नष्ट भ्रष्ट हो जाने पर उसे भी उपहास रूप 'यह वाबाजी हो गया' कहते है । यद्यपि महावीर और बुद्ध के उदय होने के काफी पहले से मगध आर्यों के अधीन हो गया था, पर यहाँ पुरोहित वर्ग को वैसा सम्मान कभी नही मिला, जैसा उसे आर्य देशो मे मिला है । वैदिक संस्कृति एक प्रकार से यहाँ के लिए विदेशी थी, इसीलिए पीछे, महावीर और बुद्ध के काल में, वहा उसका जो थोडा बहुत प्रभाव था, वह भी उठ गया। मगध से जैन धर्म की प्राचीनता और विकास ___ मगध से जहाँ तक जैनधर्म और सस्कृति का सम्बन्ध है, वह साहित्यिक आधारो पर भगवान् महावीर से पहले जाता है । बौद्ध ग्रन्थ दीघनिकाय के सामञ फल सूत्र मे भग० पार्श्वनाथ की परम्परा के चतुर्याम सवर (अहिंसा, सत्य, अस्तेय एव अपरिग्रह) का उल्लेख है । उत्तराध्यन के केशी गौतम सवाद मे और भगवती-सूत्र मे पावपित्यो (पार्श्व परम्परा के मुनियो) के सम्वाद से मालूम होता है कि मगध मे भग० पार्श्वनाथ की शिक्षाओ एव उनके समय के व्यवहारो का प्रचलन था । भग०महावीर का समकालीन भाजीवक मक्खलि गोसाल अपने समय के मनुष्य समाज के छह भेद करता है, जिसमे तीसरा भेद 'निम्रन्थ' समाज था। इससे विदित है कि निम्रन्थ सगठन पहले से ही एक उल्लेखनीय सगठन रहा है । आचाराग सूत्र से मालूम होता है कि भग० महावीर के माता पिता श्रमण भग० पार्श्व के उपासक थे । इन तथा अन्य सबल प्रमाणो से सिद्ध है, कि मगध मे जैनधर्म भग० महावीर से बहुत पहले से था। मगध की राजधानी राजगृह मे जैनो के बीसवें तीर्थकर मुनि सुव्रतनाथ के गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान-ये चार . कल्याणक हुए थे। भगवान् महावीर ने दीक्षाकाल से निर्वाण प्राप्ति तक के बयालीस वर्षों मे १४-१५ चतुर्मास इसी मगध मे नालन्दा, राजगृह और पावापुरी मे बिताए थे। यहाँ की पावन भूमि को ही सौभाग्य प्राप्त है कि उन्हें केवलज्ञान इस क्षेत्र की एक नदी ऋजुकूला (वर्त० कि ऊल) नदी के किनारे ज भक गाँव (वर्तमान जमुई का क्षेत्र) मे प्राप्त हुआ था और उनका प्रथम उपदेशामृत राजगृह या पावापुरी मे मगध की जनता को सुनने मिला था। बौद्ध ग्रन्थो से ज्ञात होता है कि भग० बुद्ध के समय मगध मे जैनो के कई केन्द्र थे. जिनमे नालन्दा, राजगृह और पावा प्रमुख थे। मज्झिमनिकाय के अनुसार नालन्दा मे ही २५२
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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