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________________ मगध और जन-संस्कृति डा. गुलावचन्द्र चौधरी एम ए. पी. एच डी. आचार्य गौरव का केन्द्र प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के केन्द्र मगध देश का गौरव पूर्ण नाम इतिहास के पृष्ठो में स्वर्णाक्षरो से अकित है। यहां का इतिहास, निसन्देह, न केवल भारत मे, बल्कि विश्व मे वे मिशाल रहा है। ऐसे विरले ही देश होगे, जहाँ से एक साथ साम्राज्यचक्र और धर्मचक्र की धुराएं अपने प्रवल वेग मे शताब्दियो तक जगती-तल पर चलती रही हो। मगध को ही श्रमण-सस्कृति के लिए जीवनदान, सवर्धन एव पोपण करने का श्रेय प्राप्त है तथा विश्व मे उसके परिचय देने और प्रसार का कार्य यही से सम्पन्न हुआ था। भारत के विशाल भूभाग को एक छत्र के नीचे लाने वाले साम्राज्यवाद रूपी नाटक के अनेक दृश्य यही खेले गए थे। वर्षमान महावीर और तथागत बुद्ध की सर्वप्रथम अमरवाणी सुनने का सौभाग्य इसी स्थल को मिला था और जैन तथा वौद्धधर्म के उत्कर्ष के दिन इसी भूमि ने देखे थे। इतना ही नही, आजीवक आदि अनेक सम्प्रदायो और दर्शनो को जन्म देने और उन्हे सदा के लिए इतिहास की वस्तु बना देने का गौरव भी इसी क्षेत्र को प्राप्त है । इसी महीखण्ड पर आध्यात्मिक विचार-धारा और भौतिक सभ्यता ने गठ-बन्धन कर भारतीय राष्ट्रवाद की नीव डाली थी । प्रतापी राजा विम्बसार श्रेणिक एव अजातशत्रु, नन्दवशी राजा, सम्राट् चन्द्रगुप्त और उसका पौत्र प्रियदर्शी अशोक शुगवशीय सेनानी पुष्यमित्र तथा पीछे गुप्त साम्राज्य के दिग्विजयी सम्राट् समुद्रगुप्त और उनके वशनो ने इसी प्रदेश से ही विस्तृत भूभाग पर शासन कर इसे विश्व की सारी कला, नाना ज्ञान-विज्ञान और अनेक भौतिक समृद्धि का केन्द्रस्थल बनाया था। यहां के कलाकारो, मेधावियो और राजनीतिज्ञो की जगत मे प्रशसा होती थी । प्रसिद्ध कवि अश्वघोप, महान् राजनीतिज्ञ चाणक्य और कामन्दक, महावयाकरण वररुचि और पतजलि, छन्दकार पिङ्गल, महान ज्योतिर्विद आर्यभट्ट और तार्किक धर्मकीर्ति, शान्तरक्षित आदि विद्वान् इस प्रान्त की ही विभूतिया थे। ईसा पूर्व छठवी शताब्दी से लेकर छठवी २५०
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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