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गुरदेव थी रल मुनि स्मृति-ग्रन्य धारणा बनी हुई है कि महिला केवल धार्मिक क्षेत्र की वस्तु है। राजनैतिक क्षेत्र में उसका प्रवेश कम हो मकता है। इसके लिए मैं नम्रतापूर्वक कहूँगा कि वे इस प्रकार के भ्रामक जाल में न उलझे । मानवीय जीवन के जितने भी क्षेत्र व विपय है, उन सब में अहिंसा का अप्रतिहत प्रवेश है। घमं, राजनीति, अर्थनीति समाज, व्यापार, अध्यात्म, शिक्षा, स्वास्थ्य और विज्ञान आदि नभी में अहिंमा की आत्मा है। अहिंसा का मधुर स्वर है। उक्त सभी क्षेत्र अहिमा की क्रीडा भृमि रहे हैं। वह किसी मीमा या काल की परिधि में ससीमित नहीं है।
__ कतिपय राजनतिका का एक स्वर यह भी है कि गासन में कटोर मार्ग में यदि अहिंसात्मक नीति को अपनाया गया और जनसमुदाय के माय नम्रतापूर्ण आचरण किया गया, तो राजकीय दृष्टि से निम्त्रण कठिन हो जाएगा। विना दण्ड पद्धति के अन्याय किम प्रकार रुक सकेंगे। इसके उत्तर में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि अहिंमा के प्रयोगो द्वाग महात्मा गाधी ने चालीस करोड जनता को, चिरकाल तक की पगधीनता के पश्चात् म्वाधीनता का अनुगामी बनाया, जिमका जनता जनार्दन ने स्वय अनुभव किया है । गाधी युग की स्वाधीनता की देन तो अविस्मरणीय है ही, पर इसमें भी गाधी के दर्शन ने स्वभावत जो अहिंसात्मक वायुमण्डल की विश्व व्यापी नृष्टि हुई है, वह अधिक मूल्यवान है । उनकी गजनीतिक अहिंमा ने कम से कम ऐमा वातावरण तो उत्पन्न कर ही दिया है कि आज हम अहिंसा व उसकी अक्षुण्ण शक्ति के लिए विश्व को अधिक समझाने की आवश्यकता नहीं है । अहिंसा और विज्ञान
हिमा-तत्त्व मानवीय जीवन के आन्तरिक पक्ष को मुदृट बनाने वाला है, तो विज्ञान मानवीय जीवन के बाह्य पक्ष को । एक आध्यात्मिक भावना मे अनुम्यून है, तो दूसरा भौतिकवाद के मुरग रग में अनुरंजित । आज विनान ने बाहर की मुख-सुविधाएं व वदाई, मानव के रहन-सहन के स्तर को ऊपर उठाया और युद्वादि की सहारक शक्ति का भी पर्याप्त विकास किया। पर इममे मानव को आत्मिक लाभ क्या मिला? यह एक ज्वलत प्रश्न है, जिस पर गहराई से चिन्तन करना है। आज विश्व ऐमे सक्रान्ति काल में गुजर रहा है कि उसके मन्मुख विविध समस्याएं मुह वाए खटी है । एक और विश्व-गान्ति की समस्या तो दूसरी ओर अणु अस्त्री के निर्माण की प्रतिद्वन्द्विता, जिसने राष्ट्र के विचारगील नेताओं को चिन्तित बना डाला है। कोई भी राष्ट्र निर्भय प्रतीत नहीं होता । आणविक युद्धो से सारा विश्व अगात है। न जाने कब किम प्रलय की आधी में समाप्त हो जाएगे, इम आगका से मानव समाज के प्राण यिरक रहे है। इसी सवंदना में वैनानिक मूर्धन्य प्रो० आई म्टाइन की अन्तिम आह से मानव समाज के लिए यह मग निकला था-"हम मानव होने के नाते अपने मानव बन्धुओ से अनुरोध करते हैं कि आप अपनी मानवता की याद रखे और शेप सब कुछ भूल जाएं। यदि आपने ऐसा किया, तो आपके समक्ष स्वर्ग का अभिनय द्वार खुल जाएगा। यदि आप ऐमा नहीं कर सके, तो ममार की मार्वभौम मृत्यु का खतरा आपके सामने होगा।
1 We appeal as human beings to human beings. Remember your humanity and forget the rest If you can do so the way lies open to a new paradise. If you can not do so there lies before you the risk of universe death.
-Elbert Eastiens, July 1955