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अहिसा और विज्ञान
गणेशमुनि शास्त्री साहित्यरत्न
अहिसा का स्वरूप
विश्व के जितने भी धर्म, दर्शन और सम्प्रदाय है, उन सभी ने अहिंसा के आदर्श को स्वीकार किया है । वह चाहे जैन, वैदिक, ईसाई, पारसी, इस्लाम ही क्यो न हो | किसी ने अहिंसा के आशिक रूप को माना है, तो किसी ने उसके पूर्ण रूप को, पर माना अवश्य है । यद्यपि इन-सभी धर्मों के प्रवर्तको ने अपनी अपनी दृष्टि से अहिंसा तत्त्व की विवेचना की है, फिर भी मै इतना अवश्य कहूँगा कि इस सम्बन्ध मे जैनदर्शन की जितनी गहरी उहान व अन्वेषण है, उतनी अन्य धर्म व दर्शन को नही। जैन-दर्शन ने अपने चिन्तन के द्वारा विश्व को एक अनुपम दृष्टि प्रदान की है। यह अतीत काल से अहिसा का सूक्ष्म विवेचन व व्याख्या प्रस्तुत करता हुआ अहिंसा के राज-पथ पर बढने के लिए प्रोत्साहित करता रहा है । श्रीयुत पण्डित लक्ष्मी नारायण सरोज के शब्दो मे अहिंसा की तुलनात्मक विवेचना इस प्रकार है -"ईसामसीह की अहिंसा मे माँ का हृदय है और कनफ्यूशियस की अहिंसा मे तो हिसा की रोकथाम मात्र है, तथा बुद्ध की अहिसा तो उनके धर्म की भाति मध्यम मार्ग की अनुगामिनी है, एव हिन्दू धर्म की अहिंसा तो हिसा को भी साथ लेकर चली है, और महात्मा गाधी की अहिंसा जितनी राजनैतिक है, उतनी धार्मिक नहीं। पर भगवान महावीर की अहिंसा मे उस विराट पिता का हृदय ह, जो सुमेरु-सा सुदृढ कठोर कर्तव्य लिए है। अहिंसा और राजनीति
अहिंसा वैयक्तिक व सामाजिक जीवन को समुन्नत बनाने तक ही सीमित नहीं है, किन्तु राजनैतिक क्षेत्र में भी इसकी प्रतिष्ठा, निर्विवाद प्रमाणित हो चुकी है ! कुछ व्यक्तियो के.अन्तरमानस में इस प्रकार की