________________
अहिंसा और विज्ञान
जन-समाज ने विज्ञान का परिणाम जितना अभिलपित समझा था, वह उतना नही निकला । भले ही विज्ञान प्रारम्भ मे आकर्षक व भव्य लगता हो, पर उसका परिणाम जव मानस के सम्मुख आता है, तब उसे परिताप-सताप हुए बिना नहीं रहता । इस दिशा मे सवका चिन्तन व अनुभव एक-सा न हो, पर आणविक अस्त्रो की भयकर प्रतिक्रियाओ से प्रो० आइस्टाइन की आत्मा आज भी बोल रही है। यह बतलाया. जाता है कि जब अमेरिका के तात्कालिक प्रेजिडेट रूजवेल्ट को आणविक बम बनाने की सिफारिश करने के लिए जो पत्र लिखा गया था, उसमे आईस्टाइन ने भी अपने हस्ताक्षर किए थे । परन्तु जब उन बमो की विनाश लीला उनके सम्मुख आई, तब उसकी मानवीय-आत्मा तडफ उठी, और मृत्यु के पूर्व आईस्टाइन ने उन हस्ताक्षरो को अपने जीवन की 'मवसे बडी भूल' कहा।
वस्तुत अणु-युग की अणुशक्ति ने मानव को एक भयकर स्थिति में डाल दिया है। जहाँ एक ओर वह मानव-समाज को चन्द्रलोक मे पहुँचाने का उपक्रम कर रही है, वहीं दूसरी ओर यमलोक की तैयारी भी। आज आणविक अस्त्रजनित विकीर्ण रेडियो सक्रिय धूलि से-विश्व का वातावरण अत्यन्त दूषित बनता जा रहा है। वैज्ञानिको की खोज के अनुसार कहा जाता है कि रेडियो सक्रिय का वातावरण मानव जाति पर ही नहीं वरन् हवा, पानी, मिट्टी, ऋतु, समुद्र, वनस्पति आदि सभी पर उसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। यहां तक कि मानव की प्रजनन शक्ति पर भी उसका प्रभाव पडे बिना नहीं रहेगा । और फिर तो मानव की भावी सन्तति का भविष्य अधकारमय ही समभिए। इतना होने पर भी बडे-बडे राष्ट्रो का ध्यान इस ओर कम ही केन्द्रित हुआ है, और दिनानुदिन नये-नये परीक्षणो की घुड-दौड प्रारम्भ है।
यदि इस आधुनिक युग मे मानव जाति का वास्तविक त्राण खोजा जाए तो, वह अहिंसा मे ही मिल सकता है। विज्ञान अब तक इन घ्वसात्मक अस्त्री का प्रतिकार करने में असमर्थ रहा और निकट भविष्य में भी आशा नही की जा सकती। ऐसी स्थिति में विज्ञान के साथ अहिंसा का क्रान्तिकारी सिद्धान्त सलग्न करना आवश्यक ही नही वरन् अनिवार्य है।
साराश-विज्ञान जहाँ नये-नये आविष्कारो के द्वारा प्रकृति के रहस्यो का समुद्घाटन करता है, तथा आणविक शक्ति के परीक्षणो से अपना अभिनव अनुभव बढाता है, वहाँ अहिंसा उनके द्वारा होने वाले विनाशो को रोकने का सुप्रयास करती है। अत उक्त दृष्टि से अहिंसा को हम विज्ञान की सहचरी कह दें, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
२३६