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________________ भौतिकवाद और जैन-दर्शन इन दो पृथक् नियमो के आधार पर ऊपर दिए गए तर्क का सहजतया निराकरण हो जाता है। शरीर सम्बन्धी समस्त क्रियाएं पौद्गलिक है अतः अन्न, जल और गर्मी जिस शक्ति का उत्पादन करते है, वह भी पौद्गलिक ही है। ऊपर दिए गए तर्क मे जिस जीवन शक्ति को भौतिक शक्ति से भिन्न कहा गया है, वह वस्तुतः भिन्न नहीं है, बल्कि भौतिक (पौद्गलिक) ही है। क्योकि अन्नादि की परिणति रस, रक्त, वीर्य आदि मे होती है, जो सारे पौद्गलिक है और इनके ही रूपान्तर को ऊपर "जीवन शक्ति" कहा गया है। उसी प्रकार मन या चैतन्य से शारीरिक क्रियाओ की उत्पत्ति मानना भी गलत है। जैन-दर्शन के अनुसार कर्म-पुद्गलो से आवृत और सश्लिप्ट आत्मा तो पौद्गलिक क्रियाओ का केवल प्रेरक बनता है । शारीरिक क्रियाओ मे जो शक्ति व्यक्त होती है, वह कोई आत्मा से उत्पन्न नहीं होती, बल्कि वह तो पौद्गलिक पदार्थ और पौद्गलिक शक्तियो का ही रूपान्तर होता है। इसलिए चैतन्य को अभौतिक मानने पर अनश्वरता का नियम जरा भी खण्डित नहीं होता । दूसरे प्रकार से भी उक्त तर्क का खण्डन किया जा सकता है । जैसे "यह तर्क तभी कारगर हो सकता है, जब कि पहले यह मान लिया जाए, कि जीव तथा जड सब की व्याख्या भौतिक रासायनिक नियमो द्वारा हो सकती है। क्योकि शक्ति की अनश्वरता का नियम भौतिक रासायनिक नियम ही है ।' किन्तु यह मान लेना तो भौतिकवाद को ही मान लेना है। अतएव यह तर्क भौतिकवाद को प्रमाणित करने के पहले ही उसे मान लेता है, जो कि उचित नहीं है। कुछ प्रमुख वैज्ञानिको का मत है कि उक्त नियम भौतिक रासायनिक जगत के पहले ही है, जीव या चेतन जगत के लिए नहीं है । उस हालत मे तो निसदेह ही वह भौतिकवाद की पुष्टि नहीं कर सकता। इस प्रकार भौतिकवाद के समर्थन में दिए जाने वाले उक्त तर्क का निराकरण हो जाता है । ___ द्वद्वात्मक भौतिकवाद चेतन की सत्ता का इन्कार तो नहीं करता, किन्तु चेतन भूत के गुणात्मक परिवर्तन से अद्भूत हो जाता है। द्वद्वात्मक भौतिकवादियो का कहना है, कि पृथ्वी की आयु २०,००० लाख वर्ष की है, जब कि मन (आत्मा) की आयु ५०० लाख वर्ष पुरानी नहीं है, अर्थात् विश्व मे पहले केवल भूत ही था और ५०० लाख वर्ष पूर्व उस भूत के गुणात्मक परिर्वतन से चेतन की उत्पत्ति हुई।' अब इस मान्यता का विचार यदि हम आधुनिक विज्ञान, जैन-दर्शन और सामान्य तर्क के आलोक में करेगे, तो सहसा ही इसकी निमूलता का पता चल सकता है। १ देखें एन इन्ट्रोडक्शन टू फिलोसफी डबल्यू जेससलेय ५-१४७ २ दर्शनशास्त्र की रूपरेखा-रजिन्द्रप्रसाद ५-७८-७९ भौतिकवाद के समर्थक तर्क और उसके निराकरण के लिए देखें वही पृ०७२-७६ 3 वैज्ञानिक भौतिकवाद (प्रथम संस्करण ५-३६) २३१
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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