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________________ भौतिकवाद और जन-दर्शन गुणो से युक्त द्रव्य पुद्गल (अर्थात् भूत) है।' इन दोनो परिभाषाओ के सूक्ष्म अन्तरो को छोड दिया जाए, तो कहा जा सकता है कि दोनो ही परिभापाओ का तात्पर्य एक ही है । यद्यपि जैन दर्शन पुद्गल की चरम इकाई को इन्द्रियगोचर नही मानता, फिर भी पुद्गल के मूर्ततत्व गुणो को तो स्वीकार करता ही है । इस प्रकार जहा तक भौतिक पदार्थों की वास्तविकता का प्रश्न है, जैन-दर्शन और भौतिकवाद दोनो ही इनकी वस्तु सापेक्ष सत्ता को स्वीकार करते है। जैन दर्शन और भौतिकवाद में जो सबसे बडा अन्तर है वह है, मूल वास्तविकताओ को सस्या के विषय मे । भौतिकवादी जहाँ केवल भूत तत्त्व को ही एक मात्र वास्तविकता के रूप मे मानते हैं, वहाँ जैनदर्शन पुद्गल के अतिरिक्त जीव आदि अन्य अस्तिकायो को भी वास्तविकता के रूप में स्वीकार करता है । यद्यपि प्राचीन दार्शनिक भौतिकवाद और आधुनिक वैज्ञानिको के भौतिकवाद मे यह अन्तर तो है, कि जहा प्राचीन भौतिकवादी "चेतन" अथवा आत्मा को सर्वथा ही जड-भूत तत्व से अभिन्न मानते थे, वहाँ आधुनिक भौतिकवादी वैज्ञानिक मास के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के आधार पर जीवन और मन को जड भौतिक तत्त्व से सर्वथा अभिन्न नही मानते । द्वद्वात्मक भौतिकवाद के अनुसार "वैज्ञानिक भौतिकवादियो" की मूल ईटें परमाणु नही है, कण, तरग, विच्छेद-युक्त घटना प्रवाह है। जिनके खमीर मे भी क्षण-क्षण नाग उत्पादक का नियम मिला हुआ है 'यह सच है कि जीवन या मन (आत्मा) जिससे पैदा हुआ है, वह भूत (भौतिक तत्त्व) ही है, किन्तु मन भूत, हगिज नहीं है-किसी तरह से भी नही है । चाहे उसके अन्तस्तल मे घुसकर देख ले । यह बिल्कुल गुणात्मक परिवर्तन पूर्व (भूत) प्रवाह से टूटकर नया प्रवाह है। इससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है, कि भौतिकवादी वैज्ञानिक चेतन को भूत से भिन्न तो मानते है, और उसकी वास्तविकता का भी निषेध नहीं करते । परन्तु चेतन की सत्ता को चरम वास्तविकता के रूप मे स्वीकार नहीं करते। बल्कि उमको भूत के गुणात्मक परिवर्तन द्वारा ही उद्भूत मानते हैं । अत इनके मत मे विश्व के मूल मे तो एक मात्र भूत ही चरम वास्तविकता है। वैज्ञानिको के भौतिकवाद के समर्थन में यह एक युक्ति दी जाती है, कि 'शक्ति की अनश्वरता का नियम (Iary of conservation of encigs) विज्ञान का प्रतिष्ठित नियम है । उसका मतलब है, कि विश्व की कुल शक्ति समान रहती है, न घटती है और न बढती है। केवल रूपातरित होती है । यदि ' स्पर्श-रस-गन्ध-वर्णवान् पुद्गल. २ पाश्चात्य दार्शनिको मे डेमोक्टिस की यह मान्यता थी, कि भौतिक परमाणुओ से ही "आत्मा" का निर्माण होता है। आत्मा की उत्पत्ति अत्यन्त ही चिकने, गतिशील और गोल परमाणुओ से होती है। ३ देखें वैज्ञानिक भौतिकवाद -राहुल साकृत्यायन (प्रथम संस्करण) पृ० ५८,६० " देखें वैज्ञानिक भौतिकवाद-राहुल साकृत्यायन पृ० ५६ (प्रथम सस्करण) ५ वही . "
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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