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________________ पूर्व इतिवृत्त गए १६ स्वप्नो का फल, भद्रबाहु स्वामी के द्वारा बताया गया था, जिसमे पचमकाल की भविप्य कालीन स्थिति वर्णन है । उक्त अनुश्रुति श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनो ही परपरा मे मान्य है । कल्प सूत्र स्थाविरावली मे भद्रबाहु स्वामी के चार प्रमुख शिप्यो का उल्लेख है-स्थविर गौदास, अग्निदत्त, यज्ञदत्त और सोमदत्त । उक्त शिष्यो मे से गोदास की क्रमश चार शाखाएँ प्रारभ हुई१ तामलित्तिया, २ कोडी वरिसिया, ३ पडुवद्धणिया, और ४ दासी खव्वडिया। इसका अर्थ यह है कि ये श्रमण ताम्रलिप्ति (बगाल का तामलुक प्रदेश), कोटि वर्प, और पौण्ड वर्धन प्रदेश' (पहाडपुर) मे अधिक विचरण करते रहे । पहाडपुर से प्राप्त ताम्रपत्र भी वहाँ जैन धर्म के प्रचार को प्रमाणित करता है। दासी ख-वडिया, एक विचित्र शब्द है, इसका मूलार्थ अभी विद्वानो की विचार दृष्टि मे नही आ पाया है। आचार्य भद्रवाह की पूर्वागत पट्ट-परपरा के सम्बन्ध मे, श्वेताम्बर दिगम्बर मान्यताएँ परस्पर अन्तर रखती है। श्वेताम्वर जम्बू स्वामी के पट्ट पर प्रभव, शय्यभव, यशोभद्र, सभूति विजय के पश्चात् भद्रबाहु को मानते है । जव कि दिगम्बर परपरा जवू स्वामी के पश्चात् विष्णु, नन्दी मित्र, अपराजित, गोवर्द्धन और भद्रवाहु को स्वीकार करती है। काल-क्रम मे भी अन्तर है । श्वेताम्बर भद्रबाहु का वीर सवत् १७० मे स्वर्गगमन मानते है, जब कि दिगम्बर वीर स० १६२ मे। दोनो की कालगणना मे ८ वर्ष का अन्तर है । कुछ विद्वान उपर्युक्त पट्ट परपरा के अन्तर को महत्त्वपूर्ण मान कर यह कल्पना करते है कि दिगवर श्वेताम्बर मतभेद का मूल जवू स्वामी के काल से ही पड गया था जो आगे चल कर भद्रबाहु के युग मे पल्लवित हुआ। परन्तु अपने विचार मे यह केवल शिष्य परपरा का शाखाभेद ही मालूम होता है । यदि यह कोई वास्तविक भेद जैसी वात होती तो चार-चार आचार्यों के काल मे बद्धमूल हुआ भेद भद्रबाहु के युग मे कैसे एकाएक समाप्त होता और कैसे दोनो ही परपराएं आचार्य भद्रबाहु को पचम श्रुत केवली के रूप में एक स्वर से स्वीकार करती। दुष्काल के समय भद्रवाहु साधु सघ के साथ दक्षिण मे गए और वही अनशन पूर्वक स्वर्गस्थ हुए । भद्रवाहु के साथ जाने वाला मुनि सघ शुद्धाचारी रहा और वही दिगबर परपरा का मूल-स्रोत है। स्थूलभद्र मुनिसघ के साथ इधर पूर्व भारत में ही रह गए और दुष्काल के कारण वे शिथिलाचारी हो गए। श्वेताम्वर परपरा का मूल इसी दूसरे पक्ष मे है । कुछ विद्वान उक्त चर्चा पर काफी ऊहापोह करते है, घूम फिर कर यही दिगम्बर श्वेताम्वर के मतभेद-सवन्धी बीज तलाश करते है, परन्तु यदि उक्त चर्चा की गहराई मे उतरा जाए तो कुछ उल्लेखनीय सार नहीं मिलता। श्वेताम्बर हिमवन्त स्थविरावली मे भद्रबाहु का स्वर्गवास कलिग (उडीसा) मे कुमारगिरि पर बताया है। दिगम्बर जैनाचार्य 'पौण्ड्र देश का एक अनार्य देश के रूप मे उल्लेख महाभारत मे आता है । बगाल मे, बोगरा जिले के ई० बी० आर० जमालगज स्टेशन से ३ मील दूर पहाडपुर गाँव है। इतिहासकार इसी को पौण्ड प्रदेश कहते हैं।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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