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________________ गुन्डेच थी रन मुनि स्मृति-ग्रन्थ मेरमा ग कार्य माँगा गग। कुछ लोगों को लकड़ी, लोहा. चमड़ा आदि का उपयोग कर आवश्यक स्तुओं का उन्पादन करने के लिए न्हा गण । कुछ लोगों को वस्तुओं के विनिमय के जगि एक-दूसरे गवदरत पूरी करने का कान मांण गण । इस तरह एक ही गर्गर के अलग-अलग अंगो ने जिन नन्ह अलग-अलग मान लिग नाता है, उसी नन्ह नमाज के अलग-अलग अग बनाकर मी व्यवस्या श निमांग किंग गया, ताकि विकास के मार्ग में कहीं बागएं उत्पन्न न हों, पर मनुष्य के कुटिल नन में अपने स्वार्गे को पूरा करने के लिए एक गम में ऊंचा और दूसरे को नीच माना। फरवत्प जाति-ति आदि मंत्रानं भाग्नाएँ उपर हुई। किसी एक कार में पंछ बनाना और दूसरे को अयेष्ठ बताना, इमी नन्ह ऊंच-नीचपन की कल्पना कर पानपरिक व्यव्हागं में भेट उत्पन्न करना बने बड़ी हिमा है। वाह मनात का कोई गै काम गं न हो नत्र समान हैं। उन कामों को कग्न गर्न ममन मानव न नमान है। इस तरह का मानना-मूनक दृष्टिगण ही मन्न, मन्य व्यवहार करने की प्रेरणा देता है और वही सन्नी हिम्म का कर है। युग में भारत में नगगन ऋपनदेव ने समाज का नीन भागों में बटागनिया-अनि, मनि और कृषि नानव के मन में पैदा होने वाली पाता की, अपराध माना गोगन लिए सदन है, वह अनि विभाग में आता है। मान-विज्ञान की माना और गिनन का काम करने वाले मनि विभाग में जाने हैं। उत्पादन विनिमय और व्यापार की जिम्मेदारी उठाने वाले कृषि विभाग में आने है। उन युग की जहन्नु के अनुसार यह बडगरा ग। ऐसा मानना आवश्यक नहीं है कि आज भी ठीक उन गन्दी की पकड़कर चलना पड़ेगा । परिस्गितियों के अनुसार कुछ परिखनन अनिवार्य होगा। लेकिन नाना की दृष्टि में समान में डमी नन्ह मान ग वगग करना होगा और सब प्रकार के काम करने वाले नमान तर के हैं, ऐमा नानना होगा। श्योकि जनसख्य का विस्तार अधिकामि हो रहा है और आज कृषि नां योग्य का जरिग बना दिग गया है, इसलिए आज परिस्थिति में घायट पूरे समाज के लिए कृषि अनिवार्य मानी जाए । पर मूल प्रश्न तो यह है, नि अहिंसा की दृष्टि ने अनि, मनि और .पि काम करने वाले मनुष्टं में किसी तरह न भेट नहीं है, गेई ऊंचा-नीचा नहीं है, जानि-भेद जन्न मानव का स्वार्य और दुगह मात्र है। कम्मुणा भणी होह, कम्मृणा होड खत्तिमो। बइसो कम्मुणा होड, मुद्दो हवइ कम्मृणा ॥" महिला का प्रारम्भ मनुष्य में होता है। जैसे शिक्षा का आरम्भ "क-ब-ग" में होता है, उसी नन्हहिहान दृष्टि से मनुप्य जल्दी नमन में आता है। किसी भी दुब ने पीडिन मनुष्य को जब छोटा बच्ग भी देखना है , तो उनकी आत्मा में कम्पन-मा छा जाना है। एक महज महानुभूति की भावना उसके अनुकरण में उठनी है । यह बो सहन हमी , है वही अहिंसा का प्रवेग-द्वार है। किसी को दुग्नी देवने ही उमरेतुन गे दूर करने का प्रयत्न करने की इच्छा होती है। मनुष्य के दुखों का प्रनाउ आत्मा पर बहुत ही गोत्र पड़ता है। यह नहीं है, कि महिला का आग्म्म मनुप्य में होगा और २१६
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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