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अहिसा का वैज्ञानिक प्रस्थान
भगवान महावीर की विरासत का जो लाभ सामान्य भारतीय जनता को प्राप्त हुआ, वह भी उल्लेखनीय है। उनकी लोकोत्तर साधनामयी तपस्या का जैसा लाभ श्रमण-सस्कृति को प्राप्त हुआ, वैसा ही उनके धर्म प्रचार का सनातन वैदिक-सस्कृति को पखारने के रूप में सामान्य भारतीय जनता को प्राप्त हुआ। धर्म-कर्म पर ब्राह्मणो का एकाधिकार था। धर्मशास्त्र सामान्य जनता के लिए अगम्य तथा दुर्बोध वैदिक संस्कृत भापा मे होने के कारण उन पर भी ब्राह्मणो का ही एकाधिकार था । उनकी मनमानी व्यवस्था धर्म के नाम पर जनता के सिर बलात् थोप दी जाती थी। दान-दक्षिणा और पुरोहितार्थ पर निर्भर ब्राह्मण वर्ग समस्त धर्म-कर्म के लिए "दलाल" बन गया था। स्वय निठल्ला बनकर उसने सारे समाज को भी धर्म-कर्म की दृष्टि से निठल्ला बना दिया था। धर्म की इस ठेकेदारी और दलाली के विरुद्ध भगवान महावीर ने विद्रोह कर दिया । धार्मिक कर्म-काण्ड के भौगेश्वयं का निमित्त बन जाने के कारण उसका रूप नितात निवृत्त हो गया था। इस हिसा का समावेश यहाँ तक हो गया कि नरबलि भी उनमे दी जाने लगी। इस हिंसाकाण्ड का भी भगवान् महावीर ने तीव्र प्रतिवाद किया। वर्ण धर्म को जडता व मूढता के कारण अन्यगत जात-पात के ऊंच-नीच तथा भेदभाव का ही रूप मिल गया था। भगवान महावीर ने इस रूढिगत सामाजिक व्यवस्था को भी जडमूल से झकझोर दिया। "स्त्रीशूद्रौ नाधीयताम्" अर्थात् स्त्री और शूद्र को पढने पढाने का अधिकार नहीं है, इस ब्राह्मण व्यवस्था के विरुद्ध भी क्रान्ति का शख फूक दिया। आध्यात्मिक साधना का मार्ग उनके लिए प्रशस्त बना दिया। इसी कारण सन्त विनोबा ने बुद्ध की अपेक्षा महावीर को कही अधिक महान् सामाजिक एव धार्मिक क्रातिकारी कहा है । उनका मत यह है, कि भगवान् श्रीकृष्ण के बाद स्त्रियो के लिए आध्यात्मिक पथ को प्रशस्त बनाने वाले भगवान महावीर ही थे। यह कहा जाता है, कि उनके सघ मे पचास हजार मे चौदह हजार भिक्षुणिया थी। इस प्रकार भगवान् महावीर ने भारतीय जीवन की प्रमुख श्रमण तथा ब्राह्मण दोनो ही सास्कृतिक धाराओ को निखारने का सफल क्रान्तिकारी प्रयत्न किया । वह उनकी भारतीय जीवन के लिए सबसे बडी विरासत है। भारतीय जीवन के प्रवाह को नियत्रित रखने वाली ये दोनो धाराएं नदी के दो किनारो के समान है। उन दोनो को निखारकर सुधारने और सुदृढ बनाने वाले भगवान् महावीर को हमारे शत-शत प्रणाम है।
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