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________________ +++++ यथार्थवाद और भारतीय दर्शन डा० सुरेन्द्र बालिंगे +++++++ 'यथार्थवाद' शब्द का Realism के प्रतिशब्द जैसा प्रयोग किया जाता है । 'यथार्थवाद' शब्द बहुत सदिग्ध है । बहुधा यही आक्षेप Realism शब्द के प्रति भी किया जा सकता है । किन्तु Realism शब्द का अर्थ पाश्चात्य तत्वज्ञान मे बहुताश निश्चित हुआ है । वैसा 'यथार्थवाद' का अर्थ निश्चित नही हुआ है । एक दृष्टि से देखा जाए तो भारत के सभी दर्शन विश्व का या ब्रह्म का यथार्थं स्वरूप सोचने का प्रयत्न करते है । किन्तु जब तक वे उसका यथार्थ स्वरूप निश्चित रूप से नही समझते और वह समझना मेरे मत मे मुश्किल है— तब तक किसी भी दर्शन को यथार्थ दर्शन नही कह सकते । पुनश्च, 'यथार्थ' शब्द मे 'अर्थ' शब्द अति सदिग्ध है। उसका एक अर्थ 'वस्तु' ऐसा है । और दूसरा अर्थ 'अर्थ' है । वस्तु और अर्थ का सम्बन्ध महत्वपूर्ण होने के बाद भी वस्तु और अर्थ एक नही हो सकते । अतः यथार्थ मे के 'अर्थ का अर्थ, याने meaning लिया तो विषय की सदिग्धता और बढेगी । अत लेख के लिए 'यथार्थ' का अर्थ 'यथावस्तु' ऐसा ही लेना होगा । किन्तु 'यथावस्तु' यह भी विकट समस्या है | अतः यथावस्तु की इस लेख के लिए व्याख्या इस प्रकार करनी पडेगी, वस्तु, वह जो अपने अस्तित्व के लिए ज्ञाता पर (या मन पर) अवलबित नही है । अधिकाश लोग घट पट आदि वस्तु को एव प्रकार मानते हैं । किन्तु घटपदादि वस्तु एव प्रकार या न हो, ज्ञातृ स्वतन्त्र वस्तु है, यह यथार्थवाद का मतलब है । अत यथार्थवाद का मतलब " अ-विज्ञान - वाद" इस प्रकार लेना होगा। १६६ यथार्थवाद या Realism का इस प्रकार अर्थ निश्चित करने के बाद यह भी समझना जरूरी है कि Realism की कल्पना, जिस प्रकार आज पैदा की जाती है, पाश्चात्य है । और वहाँ भी बीसवी शताब्दी के पहले कुछ दशको मे खासकर इस कल्पना का अधिकाश प्रसार हुआ । किन्तु किसी भी मान्यवर तत्वज्ञ
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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