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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
नय और निक्षेप का सम्बन्ध
नय और निक्षेप में विपय और विपयि-भाव सबध है। नय ज्ञानात्मक है और निक्षेप यात्मक । निक्षेप को जानने वाला नय है। शब्द-अर्थ मे जो वाच्य-वाचक सबध है, उसके स्थापन - क्रिया का नाम निक्षेप है और वह नय का विषय है, तथा नय उसका विषयी है।
आदि के तीन निक्षेप द्रव्याथिक नय के विषय और अतिम निक्षेप पर्यायार्थिनिय का विषय है। बाल, युवा एव मनुष्य आदि भिन्न भिन्न अवस्थाओ वाले मनुष्य मे नाम का विच्छेर /ही देखा जाता । अतः नाम निक्षेप अन्वयी है और यही कारण है कि वह द्रव्याथिक का विषय है इसी प्रकार तीर्थदर की प्रतिमा आदि मे काल भेद होने पर भी स्थापना ज्यो की त्यो बनी रहती/ । इसलिए अन्वयी होने के कारण स्थापना निक्षेप भी द्रव्याथिक नय का विषय मानने मे तक की रूरत ही नहीं है, किन्तु इस प्रकार का अन्वयित्व भाव-निक्षेप मे नही है। इसलिए यह पर्यायार्थिक नय का विषय माना गया है।
निक्षेप का विवेचन भापा को शुद्ध बनाने की दृष्टि से एक में पूर्ण विषय है, और इसलिए इस निबध मे इसे विस्तार से बतलाया गया है।
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