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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
की जाती है, वह स्थापना-निक्षेप से निक्षिप्त नाम वाले पदार्थों की स्थापना है। द्रव्य-निक्षेप से युवराज भी राजा कहा जाता है । अत युवराज की मूर्ति आदि मे राजा की स्थापना द्रव्य-निक्षेप से रखे हुए नाम वाले पदार्थ की स्थापना कहलाती है और भाव-निक्षेप मे जो राजा है, उसकी स्थापना भाव-निक्षेप से निक्षिप्त नाम वाले पदार्थ की स्थापना है ।
स्थापना नित्य भी होती है और अनित्य भी। नन्दीश्वर आदि द्वीपो मे स्थित जो नित्य चैत्य है, उनकी स्थापना नित्य और अनित्य प्रतिमा एव चित्र आदि की स्थापना अनित्य कहलाती है।
द्रव्य निक्षेप
___ होने वाली पर्याय वाला पदार्थ द्रव्य-निक्षेप कहलाता है । उसके दो भेद है-एक आगम द्रव्य-निक्षेप और दूसरा नो आगम द्रव्य-निक्षेप । तद्विपयक शास्त्र का जानने वाला अनुपयुक्त आत्मा आगम द्रव्य निक्षेप कहा जाता है। जैसे राजा के ज्ञान वाला अनुपयुक्त (उस समय राजा के ज्ञान के उपयोग रहित) आत्मा आगम द्रव्य राजा है। यहाँ विषयी अर्थात् ज्ञान मे विपय अर्थात ज्ञेय पदार्थ का उपचार किया जाता है । इसलिए विपय-विषयी-भाव सबध से राजा का ज्ञान ही राजा कहलाता है। जैसा कि पहले हुआ है । जब कोई कहता है कि राजा तो मेरे हृदय में है, तव उसका अर्थ होता है कि राजा का ज्ञान मेरे हृयय मे है । क्योकि लवे चौडे राजा का कभी किसी के हृदय मे रहना सभव नही है।
प्रश्न-यदि यहाँ ज्ञान मे ज्ञेय का उपचार किया गया है, तो ज्ञान मे निक्षेप होना चाहिए, न कि ज्ञाता मे । इसलिए ज्ञाता को निक्षेप का आधार मानना कैसे उचित कहा जा सकता है ?
उत्तर-यह प्रश्न बिल्कुल उचित है और ज्ञान में ज्ञेय के उपचार से उसका ज्ञान ही वह वस्तु कहलाती है, तो भी ज्ञान ज्ञाता के बिना नहीं रहता। अत ज्ञाता आत्मा ही आगम निक्षेप कहा जाता है ।
दूसरे नो आगम निक्षेप के तीन भेद है-पहला ज्ञान-शरीर दूसरा भावि और तीसरा तद्व्यतिरिक्त । पहले भेद से राजा के जानने वाले का शरीर राजा कहलाता है । ज्ञाता और शरीर का एक क्षेत्रावगाह सबध होने से ज्ञाता का त्रिकाल गोचर शरीर ही इसका विषय है ।
कार्य का उपादान कारण ही भावि नो आगम द्रव्य कहलाता है । इस भेद के अनुसार युवराज भी राजा कहा जा सकता है । क्योकि वह भावी राजा का उपादान कारण है द्रव्य-निक्षेप के इस भेद मे उपादानोपादेय भाव की प्रयोजकता है।
पदार्थ के निमित्त कारण उसके आधार आदि अन्य सभी वस्तुएँ तद्व्यतिरिक्त नो आगम द्रव्य कहलाती है। जैसे राजा के शरीर आदि । द्रव्य-निक्षेप के इस भेद के अनुसार न केवल राजा का शरीर, अपितु राजा की माता, राजा का पिता एव उसके अन्यान्य परिवार आदि सभी राजा कहला मकते है। यहां यह ध्यान रखने की जरूरत है कि सभी शुद्ध पदार्थों मे तव्यरिक्त नो आगम द्रव्य निक्षेप
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