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________________ निक्षेप सिद्धान्त सज्ञा शब्दो के विविध अर्थ स्थापना-निक्षेप किसी वस्तु की किसी अन्य वस्तु मे यह कल्पना करना कि यह वह है' स्थापना निक्षेप कहलाता है । इसके दो भेद है-एक तदाकार-स्थापना दूसरी अतदाकार-स्थापना । मूर्ति अथवा चित्र आदि मे किसी को स्थापना करना तदाकार और मूर्ति रहित शतरज के मौहर आदि मे हाथी, घोडे, वजीर, वादशाह आदि को कल्पना अतदाकार स्थापना है। मूर्तिमान अथवा मूर्तिरहित वस्तु मे यह राजा है, इस प्रकार की कल्पना स्थापना राजा कहलाता है। इसका मतलब यह हुआ कि जैसे राजा शब्द का एक वाच्य वह है, जिसका नाम राजा है, उसी तरह राजा शब्द का अर्थ वह प्रतिमा भी है, जिसमे राजा की स्थापना की गई है। प्रश्न-नाम-निक्षेप में भी किसी का कोई नाम रखा जाता है और स्थापना-निक्षेप मे भी मूर्ति आदि का राजा नाम रखा जाता है, तो फिर इन दोनो मे क्या भेद रह जाता है, जिससे इसकी भिन्नता जानी जा सके। उत्तर-नाम विशेप मे आदर या अनादर आदि की बुद्धि नहीं होती, जबकि स्थापना-निक्षेप मे यह अवश्य होती है। महावीर नाम वाले व्यक्ति का भगवान् महावीर की तरह आदर आदि नहीं होता, किन्तु महावीर की प्रतिमा के तो महावीर की तरह ही आदर, भक्ति, पूजा उपासना आदि किए जाते हैं । प्रश्न-कई लोग किसी की मूर्ति मे भी आदर अनादर नही करते, इसलिए यह उत्तर सर्वाश मे ठीक नहीं है। उत्तर-जो मूर्ति आदि मे स्थापना ही नही करते, उनके लिए आदर अनादर आदि का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। किन्तु जो लोग स्थापना का आरोप करते है, वे उन मूर्ति आदि मे आदर अनादर आदि भी करते ही है। प्रश्न-कुछ लोग नाम मे भी आदर अनादर बुद्धि करते है, तब यह कैसे कहा जा सकता है कि इस प्रकार की बुद्धि केवल स्थापना-निक्षेप मे ही होती है । उत्तर-यदि कोई किसी के देवता आदि के नाम वाले व्यक्ति अत्यन्त भक्ति के वश से उसी प्रकार आदर आदि करते हो, तो वहाँ स्थापना-निक्षेप ही कहलावेगा, नाम निक्षेप नही । यहाँ पर शका उपस्थित होती है कि किसी मे भी स्थापना किसी नाम वाले पदार्थ की ही की जाती है और नाम का व्यवहार तो चारो ही निक्षेपो से होता है । इसलिए किस नाम बाले पदार्थ की स्थापना की जाती है ? इसका उत्तर यह है कि चारो ही नामो मे स्थापना की जा सकती है। महावीर आदि पूज्य पुरुषो की जो मूर्ति वगैरह मे स्थापना की जाती है, वह नाम निक्षेप से रखे गए नाम वाले पदार्थों की स्थापना है। तथा जो महावीर आदि की प्रतिमा के चित्र में महावीर आदि को स्थापना १९५
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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