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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ आदि उपसर्ग शब्द हैं और एव आदि निपात कहलाते है । इन चार प्रकार के शब्दो मे निक्षेप का सवध केवल नाम शब्दो से है, अन्य तीन प्रकार के गब्दो से नही । क्योकि क्रिया शब्द, उपसर्ग शब्द और निपात शब्द वस्तु वाचक नहीं होते । वस्तु वाचक तो केवल नाम शब्द अर्थात् सज्ञा शब्द ही होते है । सर्वार्थ सिद्धिकार श्री पूज्यपाद आचार्य ने कहा है कि निक्षेप विधि से नाम शब्द के अर्थों का विस्तार किया जाता है।' निक्षेप हमे यह बतलाता है कि प्रत्येक नाम शब्द के कम से कम चार अथवा आठ या छह सात अर्थ अवश्य होगे । गो, हरि एव राजन् आदि शब्दो के कोश से जो अनेक अर्थ होते है, उन अर्थों से यहाँ कोई प्रयोजन नही है । यहाँ तो कोश से जिस शब्द का केवल एक ही अर्थ होता है, उसके भी निक्षेप के अनुसार अनेक अर्थ जरूर होगे । निक्षेप सिद्धान्त अप्रस्तुत अर्थ का निराकरण कर प्रस्तुत अर्थ के प्रयोग की दिशा बतलाता है। जैसे किसी ने कहा 'राजा तो मेरे हृदय मे है' यहां राजा शब्द का अर्थ राजा का ज्ञान है, क्योकि शरीरधारी राजा का किसी के हृदय मे रहना असम्भव है। उक्त वाक्य मे 'राजा का ज्ञान' यह अर्थ प्रस्तुत है, न कि स्वय राजा। इसलिए इस अप्रस्तुत अर्थ को यहां कभी नहीं लेना चाहिए । निक्षेप सिद्धान्त की यही उपयोगिता है कि वह अप्रासगिक अर्थ का निराकरण कर प्रासगिक अर्थ का निरूपण करता है । निक्षेप तत्त्व का उपयोग केवल शास्त्रो मे ही नहीं, अपितु व्यावहारिक क्षेत्र मे ही बराबर होता है। यदि निक्षेपानुसार शब्द प्रयोग न हो, तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। विभिन्न निक्षेपो के स्वरूप के निरूपण के अवसर पर यह बातें आगे स्वय ही स्पष्ट हो जाएंगी। निक्षेप के भेद और नाम-निक्षेप निक्षेप के चार भेद हैं-नाम-निक्षेप, स्थापना-निक्षेप, द्रव्य-निक्षेप और भाव-निक्षेप । लौकिक व्यवहार चलाने के लिए किसी वस्तु का कोई नाम रख देना नाम निक्षेप कहलाता है। जैसे किसी व्यक्ति का नाम महावीर रख देना। यहाँ महावीर शब्द का जो अर्थ है, वह विल्कुल अपेक्षित नहीं है। मनुष्य अपनी इच्छानुसार किसी का कोई भी नाम रख सकता है। नाम निक्षेप मे नामानुसार जाति, गुण, द्रव्य और क्रिया की आवश्यकता नही है । क्योकि यह नाम तो केवल व्यवहार चलाने के लिए ही रखा जाता है, अन्यथा महावीर केवल उसी का नाम रखा जाता है, जो वास्तव मे बहुत बडा बहादुर है। किन्तु ऐसा तो कभी नही होता है। किन्तु यहाँ प्रश्न यह उपस्थित होता है कि यदि कोई वीरता गुण की अपेक्षा से किसी का महावीर नाम रखे, तो क्या वह नाम निक्षेप न कहलावेगा? इसका उत्तर यह है कि वह भाव निक्षेप कहलायेगा, नाम निक्षेप नही। यदि ऐसा न माना जावे, तो 'महावीर तो वास्तव मे महावीर है' इस वाक्य मे दोनो महावीर शब्दो के भिन्न-भिन्न अर्थ कैसे किए जा सकेंगे। स्पष्ट है कि उक्त वाक्य मे पहला महावीर शब्द नाम-निक्षेप और दूसरा भाव-निक्षेप की अपेक्षा से है। १ सकिमर्थ ? अप्रकृत-निराकरणाय प्रकृत-निरूपणाय च । -सर्वार्थ सिद्धि १६४
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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