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निक्षेप सिद्धान्त : संज्ञा शब्दों के विविध अर्थ
__ पण्डित चैनसुखदास न्याय-तीर्थ ++++++++++++++++++++-+-+-+-+-+
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मनुष्य को अपने विचार दूसरो के प्रति प्रकट करने के लिए भाषा का प्रयोग करना पडता है। यह उसके जीवन की एक अत्यन्त आवश्यक प्रवृत्ति है, उसके बिना उसके जीवन का व्यावहारिक विकास भी रुक जाता है। इतना ही नही, जगत का कोई भी व्यवहार, भापा विना नहीं चल सकता और न ठीक रूप से मनुष्य दूसरो के काम का ही सिद्ध हो सकता है ।
ससार मे हजारो भाषाएं अथवा बोलियां है और वे शब्दो से बनती है । भाषा अवयवी है और शब्द उसके अवयव । अवयवी के ज्ञान के लिए अवयव का ज्ञान बहुत जरूरी है। अत भाषा का ठीक प्रयोग करने के लिए शब्दो का यथावत् प्रयोग आवश्यक है। शब्दो का समुचित प्रयोग भी एक सिद्धान्त है और उस सिद्धान्त को जैन दर्शन मे निक्षेपवाद या निक्षेपनत्व कहा गया है । निक्षेप का दूसरा नाम न्यास भी है । तत्त्वार्थ-सूत्रकार ने निक्षेप के स्थान मे न्यास शब्द का ही प्रयोग किया है।
शब्दो का अर्थो मे और अर्थो का शब्दो मे आरोप करना, न्यास अथवा निक्षेप कहलाता है ।
शब्दो के भेद
नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात के भेद से शब्द चार प्रकार के होते है । घट, पट, मनुष्य, देव, गो, आदि नाम शब्द है । गच्छति, तिष्ठति इत्यादि आख्यात अथवा क्रिया शब्द है । प्र, परा, उप, सम्,
१ नाम-स्थापना-द्रव्य-भावतस्तल्यास स०५प्रथम अध्याय
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