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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ ५. आर्य यशोभद्र आर्य यशोभद्र आचार्य शय्यभव के शिष्य थे । यशोभद्र तुगियायन गोत्र के क्रियाकाण्डी ब्राह्मण थे, और प्रकाण्ड वेदाभ्यासी । उनके जीवन के सम्बन्ध मे विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं होती । तत्कालीन नद राजवश और उसके मत्री वश पर आपका अच्छा प्रभाव था। विदेह, मगध और अग आदि देशो मे आपके द्वारा अहिंसा धर्म की विजय-दुन्दुभि शान के साथ बजती रही । महाप्रभावक आचार्य सभूति विजय और भद्रबाहु स्वामी आपके प्रधान शिष्य थे। यशोभद्र जी २२ वर्ष गृहस्थ दशा मे ६४ वर्ष सयमी जीवन मे और इसी मे से ५० वर्ष युग प्रधान आचार्य पद मे रहे। अन्तत ८६ वर्ष की आयु पूर्ण कर वीर स० १४८ मे स्वर्गवासी हुए। ६. मार्य संभूति विजय आचार्य यशोभद्र के आचार्य पद पर सभूति विजय जी आसीन हुए । सभूति विजय माठर गोत्रीय प्रसिद्ध ब्राह्मण विद्वान थे। इनका शिष्य मडल बहुत बड़ा था। जैन इतिहास गगन के उज्जवल नक्षत्र स्थूलभद्र आपके ही शिष्य थे। कल्प-सूत्र स्थविरावली मे १२ प्रमुख शिष्यो के नाम इस प्रकार हैं१. नन्दनभद्र, २. उपनन्दनभद्र, ३. तिष्यभद्र, ४ यशोभद्र, ५. स्वप्नभद्र, ६ मणिभद्र, ७. पूर्णभद्र, ८ स्थूलभद्र, ६ ऋजुमति, १०. जम्बू, ११ दीर्घभद्र, १२. पाण्डभद्र । स्थूलभद्र की सात बहनें भी सभूति विजय जी के द्वारा ही श्रमण धर्म मे दीक्षित हुई थी। महामत्री शकटार की पुत्रियों और स्थूलभद्र की ये सात बहने इस प्रकार है-१ यक्षा, २ यक्षदत्ता, ३ भूता ४. भूतदत्ता, ५ सेना, ६ वेणा ७. और रेणा। सभूति विजय जी ४२ वर्ष गृहस्थ जीवन मे, ४८ वर्ष साधु जीवन मे, ८ वर्ष युग-प्रधान आचार्य पद मे रहे । वीर स० १५६ मे १० वर्ष की आयु पूर्ण कर स्वर्गवासी हुए। ७. आर्य भद्रबाहु ___ आर्य भद्रबाहु स्वामी जैन संघ के समर्थ ज्योतिर्षर आचार्य थे। आप सभूति विजय के लघु गुरुभ्राता थे। सभूति विजय के पश्चात् आप आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए। परन्तु कल्पसूत्र के स्थविरावली प्रकरण मे सभूति विजय के पट्ट पर स्थूलभद्र को आचार्य माना है, आपको नही। पट्टावलीकार भी यह कहते है कि यशोभद्र के पश्चात् उनके दोनो शिष्य पट्टधर बने । यदि उन के आचार्य काल पर विचार किया जाए, तो उनका आचार्यत्व सभूति विजय जी के स्वर्गारोहण के पश्चात् ही प्रमाणित होता है। भद्रबाहु स्वामी प्राचीन गोत्री ब्राह्मण थे। दर्शन शास्त्र के उभट विद्वान और ज्योतिष शास्त्र के भी पारगत मनीषी थे । आपका जन्म प्रतिष्ठानपुर माना जाता है । कौन-सा प्रतिष्ठान ? उत्तर भारत का
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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