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गुल्देव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
उतनी सप्ट और मुनिीत नहीं हैं, जितनी विज्ञान की । आचार्य हरिभद्र' तो अतीन्द्रिय पदार्थों के तर्कवाद भी नियंकता ही एक प्रकार से बताते हैं। इस तरह दर्शन-शास्त्र के 'दर्शन' शब्द के अर्थ की पेचीदगी ने भारतवर्ष के विचारको मे जबरदस्त बुद्धिनेट उत्पन्न किया था। एक ही वस्तु को एक्वानी 'मन् मानना था दूसरा 'असत्', तीसरा 'मदसत्' तो चौथा 'अनिर्वचनीय'। इन मतभेदो ने अपना विरोध विवार के क्षेत्र तक ही नहीं फैलाया था, किन्तु वह कार्यक्षेत्र मे भी पूरी तरह जम गया था। एक-एक विवार-दृष्टि ने दर्शन का रूप लेकर दूसरी विचारदृष्टि का बडन करके अहकार का दुर्दम मूर्त रूप लेना प्रारम्भ कर दिया था। प्रत्येक दर्शन को जव धार्मिक रूप मिल गया, तो उसके सरक्षण और प्रचार के लिए बहुत से अवांछनीय कार्य करने पड़े। प्रचार के नाम पर शास्त्रार्य प्रारम्भ हुए । शास्त्रार्थों में पराजित विरोधी को कोल्टू ने पेल डालना, तप्त तेल के कडाही में डाल देना जैमी कठोर गर्ने लगाई जाने लगीं। राजाश्रय पाकर इन गात्राथियों ने भारतीय जल्पकण के इतिहास को भीपण हिंसाकाडो द्वारा रक्तरंजित कर दिया था।
____ आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व भारत के आध्यात्मिक लितिज पर भगवान महावीर और बुद्ध दो नहान् नमत्रों का उदय हुना । इन्होंने उस सनय के धार्मिक वातावरण में सर्वतोमुखी अद्भुत क्रान्ति की । उस समय धर्म के नियम उपनियमों के विपय में वेद और तदुपजीवी स्मृतियो का ही एक मात्र निर्वाच अधिकार था। उसमें पुरप के अनुभव का कोई स्थान नहीं था, और इसी आधार में धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के मेव, जिनमें बजने से नरमेव तक गामिल थे। रक्तवती और चर्मणवती जैसी सार्थक नामवाली नदियों की सृष्टि कर रहे थे । इन दो महापुन्पों ने धर्म के नाम पर होने वाली विडम्बना के विद्ध बावाज उठाई और स्पष्ट गन्दी में घोषित किया, धर्म का मालात्कार किया जा सकता है, वह अनुभव के आवार पर रचा जा सकता है। उन्होंने प्राणिमात्र को मुन्ब मन्तोप और गान्ति देने वाली अहिंसा की पुन प्रतिप्ा की। बीतरागी और तत्वन व्यक्ति अनुभव नै धर्म और उसके नियमोपनियम का यथार्थ ज्ञान कर सकता है, इस प्रकार की अनुभव-प्रतिप्ा के बल से वेद धर्म के नाम पर होने वाले क्रियाकांडो का तान्त्रिक और व्यावहारिक विरोध हुआ। अहिलक वातावरण मे जगन् को गान्ति की नाम लेने का नण मिला । महात्मा बुद्ध ने आत्मा आदि अनेक अतीन्द्रिय पदार्थों के विषय में प्रश्न किए जाने पर उन्हें अव्याकृत या अव्याकरणीय बताया। उन्होंने मीधी सादी भाषा में जगत् को दुन्न, समुदय, निरोध और मार्ग इन चार आर्यसत्यो के स्वरूप का स्पष्ट निरूपण किया और दुखसन्तप्त जगत् को निराकुलता की ओर ले जाने का अतुल प्रयत्न किया। उन्होंने जगत् को शून्य, क्षणिक, मायोपम जलवुद्वुदोपम बताकर प्राणियो को विज्ञानरूप अन्र्तमुख होने की और प्रेरित किया । आगे जाकर इन्ही क्षणिक, घून्य आदि भावात्मक गब्दो ने अगिकवाद, शून्यवाद, विज्ञानवाद आदि वादो का रूप धारण किया।
! "ज्ञायेरन हेतुवादेन पदार्या यद्यतीन्द्रियाः। कालेनैते तेषां कृतः स्यादनिर्णयः॥
___ अर्थात् यदि तर्कवाद से अतीन्द्रिय पदार्थों का ज्ञान किया जा सकता होता, तो इतने काल में अनेकों प्रखर तर्कवादी हुए उनके द्वारा अतीन्द्रिय पदार्थों का निर्णय कभी का हो गया होता।
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