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________________ स्यावाद की सर्वप्रियता शकर तो तत्व-ज्ञान के क्षेत्र मे स्याद्वाद का अधिक से अधिक प्रयोग करने वाला एक चिन्तक है । उसने भी माध्यमिको की भाति सत्य की तीन अवस्थाएं मानी और उन्हे नाम दिया–परमार्थ, व्यवहार और प्रतिभास । वास्तविक रीति से देखा जाए तो शकर ने किसी भी मत का खण्डन नहीं किया। उसने यह वताया कि प्रत्येक मत किस दृष्टि से और किस अवस्था में सच्चा है, और उसने अपनी मर्यादा का अतिक्रमण न करके बोलने का अनुरोध किया । दूसरे ढग से कहा जाए, तो शकर ने जो-जो विषय अपने हाथ में लिए, उन्हे तालाब के ऊँचे-नीचे सोपान वाले घाटो का रूप दिया । इसीलए शकर को सोपानवादी कह सकते है । हिरियन्ना ने अच्छी तरह स्पष्ट किया है, कि गकर के मतानुसार प्रत्येक उपलब्धि अपनी-अपनी सोमा तक तो सत्य है, किन्तु अपनी सीमा का अतिक्रमण करने पर वह उपलब्धि मिथ्या हो जाती है। स्वप्न-दशा की दृष्टि से स्वप्न सत्य होता है, किन्तु जागृति की दृष्टि से वही स्वप्न मिथ्या हो जाता है। उसी प्रकार जागृतावस्था का ज्ञान व्यवहार की दृष्टि से तो सत्य है, किन्तु परमार्थ की दृष्टि से मिथ्या है।' इस मिथ्या' शब्द का विशिष्ट अर्थ जो गाकर वेदान्त में है, वह स्याद्वाद सिद्धान्त के अनुकूल है । मिथ्या अर्थात् अविद्यमान नहीं, सम्पूर्ण सत् अथवा नित्य नही-अर्थत् सत् और असत् के बीच का मिथ्या है। शाकर वेदान्त मे भ्रान्ति (Erron) मात्र अगत भ्रान्ति है, क्योकि प्रत्येक भ्रान्ति मे सत्य का यत् किंचित् अश तो रहता ही है। दूसरे शब्दो मे शाफर वेदान्त के अनुसार व्यवहार दगा मे सम्पूर्ण ज्ञान अथवा सम्पूर्ण अज्ञान-इन दोनो मे से एक भी सम्भव नहीं है, अर्थात् ऐसा जो कुछ जान है, वह अशज्ञान है । दूसरी ओर उसने यह भी कहा है कि जिसकी उपलब्धि होती हो वह वस्तु असत्, अर्थात् अविद्यमान नही कही जा सकती। इन दोनो वातो को एकत्र करके ब्रेडले ने एक ही वाक्य मे कहा कि-"झूठी से झूठी वात में भी सत्य रहता है । अल्प से अल्प पदार्य मे भी सत् तत्व रहता है।" इसलिए शाकर मतानुसार किसी भी व्यक्ति का कथन सर्वथा भूठ नही हो सकता। ___इसलिए सभी धर्म और सभी दर्शन जैसा कि गाधी जी ने कहा है, सच तो है, किन्तु अधूरे है, अर्थात् प्रत्येक मे सत्य का न्यूनाधिक अश है । किसी एक मे सम्पूर्ण सत्य नही है । टेनिसन ने कहा है कि "सभी धर्म और दर्शन ईश्वर के ही स्फुलिंग है । किन्तु सत्यनारायण स्वय उन सभी में बद्ध न होकर उनसे दशांगुल ऊँचा ही रहता है।" हिरियन्ना-Outlines of Indian Philosophy p. 36r २ वही, पृ० ३६१ 3 "न बोपलभ्यमानस्यवाभावो भवितुमर्हति ।" ब्रह्मसूत्र शाकरभाष्य, २-२-२७ * There is truth in every idea however false There is reality in every existence however slight Bradley : Appearance and Reality. ५ ऋग्वेद १०-६-१ १५१
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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