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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ संशय नही । उसने और भी कहा है कि भौतिक पदार्थ सम्पूर्ण सत् और असत् के बीच अर्धसत् जगत् मे रहते है। जैन की तरह उसने भी जगत् को सदसत् कहते हुए यह समझाया कि न्यायी, वृक्ष, पक्षी अथवा मनुष्य आदि "है" और "नहीं" है, अर्थात् एक दृष्टि से “है" और अन्य दृष्टि से "नही है", अथवा एक समय मे "है" और दूसरे समय मे "नही है" अथवा न्यून या अधिक है अथवा परिवर्तन या विकास की क्रिया से गुजर रहे हैं । वे सत् और असत्-दोनो के मिश्रणरूप से है अथवा सत् और असत् के बीच मे है। उसकी व्याख्या के अनुसार नित्यवस्तु का आकलन अथवा पूर्ण आकलन "सायन्स" ( विद्या ) है, और असत् अथवा अविद्यमान वस्तु का आकलन अथवा सम्पूर्ण अज्ञान "नेस्यन्स" ( अविद्या ) है, किन्तु इन्द्रियगोचर जगत्-सत् और असत् के बीच का है। इसीलिए उसका आकलन भी सायन्स तथा नेस्यन्स के बीच का है। इसके लिए उसने 'ओपिनियन' शब्द का प्रयोग किया है। उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि "नालेज" का अर्थपूर्णज्ञान है और "ओपिनियन" का अर्थ अश-ज्ञान है । अपने "ओपिनियन" की व्याख्या "सम्भावना विषयक विश्वास" ( Trust in Probabilties ) भी की हैअर्थात् जिस व्यक्ति में अपने अशज्ञान या अल्पज्ञान का भान जगा हुआ होता है, वह नम्रता से पद-पद पर कहता है कि ऐसा होना ही सम्भव है-मुझे ऐसा प्रतीत होता है। इसीलिए स्याद्वादी पद-पद पर अपने कथन को मर्यादित करता है । स्याद्वादी जिद्दी की तरह यह नहीं कहता कि मै सच्चा हूँ, और बाकी झूठे है । लुई फिशर ने गाधी जी का एक वाक्य लिखा है-"मैं विश्वास से ही समझौता पसन्द व्यक्ति हूँ, क्योकि मैं ही सच्चा हूँ, ऐसा मुझे कभी विश्वास नहीं होता।"४ बौद्ध भी इसी तरह स्याद्वाद की दिशा में है। क्योकि वे भी मध्यममार्गी है। मध्यमार्ग स्याद्वाद का ही एक रूप है । जैन स्याद्वादी जिस प्रकार से जगत् को सदसत् कहता है, उसी प्रकार से माध्यमिक बौद्ध भी कहता है कि अस्ति और नास्ति-ये दोनो अन्त है, शुद्धि और अशुद्धि-ये दोनो भी अन्त है । इसीलिए ज्ञानी मनुष्य इन दोनो अन्तो का त्याग करके मध्य में स्थित होता है अस्तीति नास्तीति उभेऽपि अन्ता, शुद्धि - अशुद्धीति इमे पि अन्ता । तस्मादुभे मत विवर्जयित्वा, मध्ये हि स्थान प्रकरोति पण्डित. ॥ -(समाधिराजसूत्र) माध्यमिको ने परमार्थ, लोकसवृत्ति और अलोकसवृत्ति-इस प्रकार से सत्य को तीन अवस्थाएँ स्वीकृत की है। यह भी स्याद्वाद है। . सी० ई० एन० जोड-फिलासोफी फार आवर टाइम्स पृ० ४१ २ एरिक लेअन-प्लेटो, पृ०६० ३ वही, पृ. ६४ Y "I am'essentiality a man of compromise because I am never sure I am right."-Louis Fischer - The Great Challenge. १८०
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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