________________
गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-ग्रन्थ
पर अर्पण कर दिया गया। यह कितना अद्भुत दृश्य रहा होगा । वैराग्य की निर्मल गगा का यह प्रचण्ड प्रवाह साधको के लिए युग-युग तक वैराग्य की प्रेरणा का स्रोत रहा है, और रहेगा। जबू जैन-इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठो पर वैराग्य का वह दैदीप्यमान प्रतीक है, जो आज तक भी महाकाल की छाया से धुंधला नही पडा है । प्राकृत, सस्कृत, अपभ्रश, गुजराती, मारवाडी, पजाबी और हिन्दी आदि मे जबू स्वामी के जीवन-चरित्रो की एक बहुत लबी श्रृंखला है, जो उनके त्याग वैराग्य की गौरव-गाथा के सुनहले तारो को जन-मानस मे से टूटने नहीं देती है।
वर्तमान मे जो भी आगम-साहित्य उपलब्ध है, उसका अधिकाश भाग सुधर्मा स्वामी के द्वारा जबू को सुनाया हुआ है । जबू एक दिव्य श्रोता प्रतीत होते है । ज्ञानार्जन के प्रति उनकी उत्कट जिज्ञासा का ही यह प्रतिफल है कि हमे भगवान महावीर की पवित्र वाणी का कुछ अश मिल सका।
जैन परपरा का इतिहास जम्बू स्वामी को वर्तमान अवसर्पिणी काल चक्र का अन्तिम केवली मानता है । इनके बाद न कोई केवल ज्ञानी हुआ और न किसी को मोक्ष प्राप्त हुआ। इतना ही नही, विचार और आचार की सहज निर्मलता के क्षीण हो जाने के कारण उनके पश्चात् निम्नोक्त दस बाते विच्छिन्न हो गई
मनापर्यय ज्ञान, परमावधिज्ञान, पुलाक-लब्धि, आहारक शरीर, क्षपक-श्रेणी, उपशमश्रेणी, जिन कल्प, सयमत्रिक ( परिहार विशुद्ध चरित्र, सूक्ष्मसपराय चरित्र, यथाख्यात चरित्र ) केवलज्ञान और सिद्ध-पद।
जबू स्वामी ने वीर सवत् १ मे, १६ वर्ष की खिलती हुई तरुणाई मे, दीक्षा धारण की। विवाह होने पर भी बाल ब्रह्मचारी रहे । बारह वर्ष तक सुधर्मा स्वामी से गभीर ज्ञानाभ्यास किया, आगमवाचना ग्रहण की । वीर सवत् १३ मे सुधर्मा स्वामी के केवली होने के बाद आचार्य बने । आठ वर्ष तक आचार्य पद पर रहे । वीर सवत् २० मे केवल ज्ञान पाया और ४४ वर्ष जीवन मुक्त केवली के रूप में धर्म प्रचार करते रहे । वीर सवत् ६४ मे ८० वर्ष की आयु पूर्ण कर मथुरा नगरी' मे निर्वाण प्राप्त किया।
३. आर्य प्रभव स्वामी
आर्य प्रभव विन्ध्याचल की पर्वत श्रृंखला के निकट जयपुर नगर के निवासी थे। वे विन्ध्यराजा के पुत्र, कात्यायन गोत्रीय क्षत्री थे । पिता से अनबन हो जाने के कारण अपने पाच-सौ युवक
'प्राकृत 'जबू चरिय' मे बलाहक पर्वत पर निर्वाण बताया है-१६, ७, ८५ । बहुश्रुत दिगबर विद्वान
प. राजमल्ल अपने जम्बू चरिय (१२, १२१) मे विपुलाचल पर निर्वाणकहते हैं। २ प्राकृत जबू चरिय ( ७, १७-१८ ) मे विश्वसेन नाम हैं ।