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________________ पूर्व इतिवृत्त ही गण का नेतृत्व किया, यही कारण है कि भगवान् महावीर के पश्चात् जो गणधर वशीय स्थविर परपरा प्रारभ होती है, उसमे आपका नाम ही सर्व प्रथम आता है। आचारांग आदि द्वादशागी आगम साहित्य के आप ही पुरस्कर्ता माने जाते है आगम साहित्य के अभ्यासी स्पप्टत. देख सकते हैं कि भगवान् महावीर से गौतम आदि प्रश्न पूछते हैं और भगवान उत्तर देते है, और सुधर्मा जैसे पास ही तटस्य श्रोता के रूप मे सुनते हैं। अपने शिष्य जम्बू स्वामी को आगम वाचना देते हुए, वे बराबर स्थान, व्यक्ति, घटना और प्रश्नोत्तरो का वर्णन करते है और ऐसा करते समय वे जम्बू से सप्ट कहते हैं कि "सुयं मे आउसं तेण भगवया एवमक्खाय" हे आयुप्मन । मैंने भगवान् महावीर को ऐसा कहते सुना है । इस प्रकार सर्वत्र श्रवण का स्वर मुखरित होने से जैनागमो के लिए श्रुत शब्द ही रूढ हो गया। आगम वाचना मे सुधर्मा ने अपने आप को सर्वथा तटस्थ रखा है । यह नहीं कि बीच-बीच मे अपने व्यक्तित्व को भी सामने लाएँ । आश्चर्य है, समग्न आगम साहित्य मे अपनी ओर से पूछे गए, एक प्रश्न का भी उल्लेख नही है। इसका यह अर्थ तो नही कि उन्होंने भगवान् से कभी कुछ पूछा ही न होगा? सम्भवत पूछने पर भी उन्होंने अपने को विनम्र एव निस्सगभाव से अलग ही बनाए रखा। सुधर्मा ने ५० वर्ष की आयु मे दीक्षा ग्रह्ण की, वीर सवत् १३ मे अर्थात् अपनी आयु के ६३ वें वर्ष मे कैवल्य प्राप्त किया और वीर सवत् २० में सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर राजगृह वैमारगिरि पर मासिक अनगन-पूर्वक मुक्त हुए। दिगम्बर परपरा सुधर्मा स्वामी का निर्वाण विपुलाचल पर होना मानती है। २. प्रार्य जम्बू स्वामी भगवान् महावीर के निर्वाण से १६ वर्ष पूर्व, राजगृह मे, जवू कुमार का जन्म हुआ । जंबू चरित्र के अनुसार मगध नरेश विम्बसार श्रेणिक के समक्ष स्वय भगवान् महावीर ने जवू कुमार के जन्म लेने की घोषणा की थी। जंवू के पिता का नाम ऋषभदत्त और माता का नाम धारिणी था । ऋपभदत्त की गणना, मगध के धनकुवेर श्रेप्ठियो में की जाती थी । जंवू अपने माता पिता के इकलौते पुत्र थे । कथा-सूत्रो मे वर्णन है कि जंबू का १६ वर्ष की आयु मे आठ कन्याओ के साथ विवाह हुआ। ६६ करोड की सम्पत्ति दहेज मे मिली। परन्तु सुधर्मा स्वामी का उपदेश श्रवण करने के पश्चात् वे इतने वैराग्य रग मे रग गए कि सुहाग रात विना मनाए ही सुधर्मा के चरणो मे भिक्षु बन गए । अकेले नही, जवू के वैराग्य से प्रभावित हुए स्वय के माता-पिता, आठो पत्नी और उन सबके माता-पिता तया लूटने के लिए आए हुए दस्युराज प्रभव और उसके ५०० अन्य साथी चोर, इस प्रकार जबू के साथ ५०२७ विरक्त आत्माओ ने भी आहती दीक्षा धारण की । कोटि-कोटि द्रव्य जन-कल्याण के पथ 'गणपालकृत प्राकृत जंबुचरियं-५, २७५
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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