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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ एक बहु चर्चित सरस परिपाक है । उक्त अनुराग की कडी भगवान् के निर्वाण होने पर ही टूटी और उन्हे कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा के सूर्योदय मे केवल ज्ञानोदय हुआ। यह प्रतिपदा जैन पर्वो मे गौतम प्रतिपदा के नाम से सुप्रसिद्ध है। गणधर गौतम समग्र श्रमण संघ के अधिष्ठाता, अतएव सर्वोपरि महान् यशस्वी होते हुए भी इतने विनम्र कि उनकी सत्य-प्राहिणी विनम्रता के सम्मुख आज भी शत-सहस्र मस्तक श्रद्धा से झुक जाते है। उपासकदशा सूत्र के अनुसार वाणिज्य ग्राम के आनन्द श्रावक को अन्तिम साधना मे अवधि ज्ञान हुआ। यथाप्रसग चर्चा होने पर गौतम ने उनसे कहा कि 'धावक को इतना बृहत् अवधि ज्ञान नही हो सकता, तुम मिथ्या कहते हो।' वात उलझ गई, परन्तु भगवान महावीर के पास जाने पर ज्यो ही उन्हे अपनी भूल मालूम हुई, तो तत्काल वापस लौट कर आनन्द से क्षमा याचना की । वस्तुत गौतम सत्य की साक्षात् मूर्ति थे। यह तो क्या, अपने वश परम्परागत धार्मिक विश्वास को भगवान् से सत्य दृष्टि मिलते ही, उन्होने उसी क्षण छोड दिया । गौतम मे हम अनाग्रह बुद्धि का चरम उत्कर्ष देखते हैं । गौतम की प्रतिबोध देने की शक्ति भी विलक्षण थी। पृष्ठचपा के गागील नरेश को प्रतिबोध देने के लिए भगवान् महावीर ने उन्हे भेजा था । अष्टापद पर्वत से उतरते हुए उन्होने पदरह सौ तीन तापसो को सहज ही श्रमण धर्म में दीक्षित किया। भगवान पार्श्वनाथ के अनुयायी केशी कुमार श्रमण को पाच सौ शिष्यो के साथ महावीर-सघ मे सम्मिलित करने का श्रेय भी गौतम की समन्वयात्मक विचारशैली को ही प्राप्त है। उत्तराध्ययन सूत्र का केशीगौतमीय सवाद उक्त तथ्य का साक्षी है। भगवान् महावीर के सघ का समग्र शासन भार गौतम के हाथो में था। परन्तु केवलज्ञान होते ही उन्होने सघ-शासन पचम गणधर सुधर्मा को सौप दिया। पूर्ण वीतराग केवली होने पर, जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, सघ-सचालन का दायित्व वहन नहीं किया जाता । अस्तु, निस्सग भाव से १२ वर्ष तक भगवान महावीर के द्वारा उपदिष्ट एव स्वय के द्वारा साक्षादनुभूत सत्य धर्म का प्रचार कर अन्त मे राजगृह नगर के वैभारगिरि पर मुक्त हुए। गौतम ५० वर्ष की आयु मे दीक्षा लेते हैं, ३० वर्ष छद्मस्थ रहते है और १२ वर्ष जीवन-मुक्त केवली । १. गणघर सुधर्मा स्वामी सुधर्मा कोल्लाक सनिवेश के निवासी अग्नि वैश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे । आपका जन्म विक्रम के ५५१ वर्ष पूर्व हुआ था । आप अपने युग के समर्थ वेदाभ्यासी विद्वान थे। आपके पास ५०० छात्र अध्ययन करते थे । आप भी गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति के साथ पावापुरी मे सोमिल भट्ट के यहाँ यज्ञ मे भाग लेने गए थे और भगवान् महावीर के उपदेश से प्रभावित होकर गौतम के साथ ही अपने ५०० शिष्यो सहित श्रमण धर्म में दीक्षित हो गए थे । ग्यारह गणधरो मे आप का स्थान पाँचवा है। गौतम को केवल ज्ञान होने पर समग्र सघ के संचालन का नायकत्व आप पर ही आया । ग्यारह मे से अग्निभूति आदि ९ गणधर तो भगवान् के सामने ही निर्वाण को प्राप्त हो गए थे। अस्तु, सुधर्मा ने
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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