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________________ पूर्व इतिवृत्त फलस्वरूप तीर्थकर कहलाए। उन्होने स्त्री-पुरुप, ब्राह्मण-शूद्र, आर्य-अनार्य आदि सभी को बिना किसी भेदभाव के अपने धर्म-तीर्थ मे स्थान दिया और अखिल विश्व-मानव के लिए धर्म साधना का मगल द्वार खोल दिया। भगवान् महावीर ३० वर्ष गृहवास मे रहे, साढे १२ वर्ष छद्मस्थ और ३० वर्ष तीर्थकर पद से धर्म प्रचार करते रहे । राजगृह और वैशाली उनके दो प्रमुख धर्म प्रचार केन्द्र थे । इसी लिए राजगृहनालदा मे १४ और वैशाली वाणिज्य मे १२ वर्षावास किए। अन्तत पावापुरी मे हस्तीपाल राजा की रज्जुक सभा मे कार्तिक कृष्णा अमावस्या के प्रात काल ७३ वर्ष की आयु मे निर्वाण लाभ कर मुक्त हो गए । निर्वाण के समय नौ मल्ल और नौ लिच्छवी-इस प्रकार १८ गणराजा उपस्थित थे, जिन्होने कल्प-सूत्र के अनुसार द्रव्य उद्द्योत (दीपावली) का प्रारम्भ किया ।। गणधर इन्द्रभूति गौतम भगवान महावीर के ११ गणधरो मे, इन्द्र भूति गौतम प्रमुख थे। अपने युग के प्रकाण्ड पण्डित और महावादी, भगवान् के चरणो मे दीक्षित हुए, तब उनके पास ५०० छात्र वेदाध्ययन कर रहे थे, जो उनके साथ ही श्रमण बन गए थे। आप मगध की राजधानी राजगृह के पास गौर्वर ग्राम के रहने वाले थे, जो आज नालदा का ही एक भाग माना जाता है । भगवती सूत्र १, १ के अनुसार गौतम घोर तपस्वी, चौदह पूर्व के ज्ञाता, चतुर्सानी, सर्वाक्षर सन्निपाती तेजस लब्धि के धर्ता और एक राजस्थानी सत की भाषा मे "अंगूठे अमृत बसे, लन्धितणा भडार" थे। उनके वज्र शरीर का रंग कसौटी पर कसी हुई स्वर्ण-रेखा के समान चमकदार स्वर्ण-प्रभा वाला था। ___ अग और उपाग आगम-साहित्य का अधिकाश भाग महावीर और गौतम के सवाद रूप मे है । गौतम प्रश्नकर्ता है और महावीर उत्तरदाता । जो स्थान कृष्ण के समक्ष अर्जुन का है, बुद्ध के समक्ष आनन्द का है, और उपनिषत्कालीन उद्दालक के समक्ष श्वेतकेतु का है, वही स्थान महावीर के समक्ष गौतम का है । गौतम के प्रश्न क्या है, ज्ञान-गगा के मूल उद्गम के उद्घाटक है । गौतम को माध्यम बना कर भगवान् महावीर ने जो विश्व साधको को अप्रमत्त-भाव का सतत जागरण का संदेश दिया है, वह उत्तराध्यन के दशम अध्ययन मे आज भी मुखरित है कि "समय गोयम | मा पमायए ।" गौतम | एक क्षण के लिए भी प्रमाद, आलस्य कर्तव्य के प्रति उदासीनता मत कर। भगवान् महावीर और गौतम की आत्माओ का मिलन इसी जन्म से ही नही, अनेक पूर्व जन्मो से चला आ रहा था । भगवान् के प्रति गौतम का अनन्य अनुराग जैन कथा-साहित्य मे भावुकता का १ गए से भावुन्जोए दम्वुज्जोयं करिस्सामो -कल्प-सूत्र, पचम व्याख्यान, १२८ सूत्र ' 'कणगपुलगनिघसपम्हगोरे'–भगवती सूत्र १, १, ८
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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