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भारतीय संस्कृति में बुद्ध और महावीर
मुनि श्री नथमलजी
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ढाई हजार वर्ष पहले का काल धर्म-दर्शन का उत्कर्ष काल था । उस समय विश्व के अनेक श्रचलो मे महान् धर्म-पुरुष अवतीर्ण हुए थे।
उसी समय भारतीय क्षितिज पर दो पुरुप अवतीर्ण हुए। दोनो क्षत्रिय, दोनो राजकुमार और दोनो जन सत्ताक राज्य के अदिवासी । एक का नाम था 'सिद्धार्थ और एक का नाम था 'वर्द्धमान' । सिद्धार्थ ने नेपाल की तराई मे अवस्थित कपिलवस्तु मे जन्म लिया । वर्द्धमान का जन्म वैशाली के उपनगर क्षत्रिय कुण्डपुर मे हुआ । सिद्धार्थ के माता-पिता थे-माया और शुद्धोदन । बर्द्धमानके माता-पिता थे-त्रिशला और सिद्धार्थ । दोनो श्रमण-परम्परा के अनुयायी थे। दोनो श्रमण बने और दोनो ने उसका उन्नयन किया। सिद्धार्थ का धर्म-चक्र प्रवर्तन
सिद्धार्थ गुरु की शोध मे निकले । वे कालाम के शिष्य हुए । सिद्धान्तवादी हुए, पर उन्हे मानसिक शान्ति नही मिली। वे वहाँ से मुक्त होकर उद्रक के शिष्य बने । समाधि का अभ्यास किया । पर उससे भी उन्हे सन्तोप नही हुआ । वे वहाँ से मुक्त हो, गया के पास उस्वेल गाँव मे गए। वहाँ देह-दमन की अनेक क्रियाओ का अभ्यास किया । उनका शरीर अस्थि-पनर हो गया, पर शान्ति नहीं मिली। देह-दमन में उन्हे कोई सार नही दीखा । अब वे स्वय अपने मार्ग की शोध मे लगे। वैशाखी पूर्णिमा को उन्हे बोधि-लाभ हुआ। महाभिनिष्क्रमण के छह वर्ष बाद बुद्ध बने । सारनाथ मे उन्होने धर्मचक्र प्रवर्तन किया।