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गुरुदेव श्री ग्ल मुनि स्मृति-ग्रन्थ
अथ नही है, पर उसका एक बहुत बडा भाग उनकी विचार-बारा का प्रतिनिधित्व करता है । माध्य
और शव भी यन-सस्था के उतने ही विरोधी रहे है, जितने जैन और बौद्ध । प्रजापति दक्ष के यज्ञ मे गिव का आह्वान नहीं किया गया । महर्षि दधीचि ने अपने योग-वल में जान लिया कि ये मव देवता एक मत हो गए है, इसलिए उन्होंने शिव को निमन्त्रित नहीं किया है।' उन्होंने प्रजापति दक्ष से कहा"मैं जानता हूँ, आप सब लोगो ने मिल-जुलकर, शिव को निमन्त्रित न करने का निश्चय किया है, परन्तु मैं गकर से वहकर किसी को देव नही मानता । प्रजापति दक्ष का यह विशाल यज नष्ट हो जाएगा।"२
आविर वही हुआ । पार्वती के अनुरोध पर णिव ने वीरभद्र की मृष्टि की। उमने प्रजापति दक्ष के यन का विवश कर डाला।
यह कया बताती है कि शिव उस सस्कृति के थे, जिसे यन मान्य नहीं था। इसीलिए देवताओ ने उन्हें निमन्त्रित नही किया था।
साख्य-कारिका मे स्पप्ट है कि साख्य लोग यज्ञ में विश्वास नहीं करते थे । वे इमे हेय मानते थे।
महपि कपिल और स्यूमरश्मि के सवाद में भी यही प्राप्त होता है । स्यूटरश्मि हिंसा का समर्थन करता है और महर्षि कपिल अहिंसा की प्राचीन परम्परा को पुष्ट करते है। उन्होने लप्टा के लिए नियुक्त गाय को देखकर नि श्वास लेते हुए कहा-हा वेद । तुम्हारे नाम पर लोग ऐमा-ऐमा अनाचार करते है।
स्यूमरश्मि ने कहा-आप वेदो की प्रामाणिकता में सदेह करते है। महपि कपिल वोले- मैं वेदो की निन्दा नहीं करता है। किन्तु वैदिक मत में भिन्न दूसरा मत है-कर्मों का आरम्भ न किया जाएउमका प्रतिपादन कर रहा हूँ । यन आदि कार्यों में आलम्बन (पशु-वध) न करने पर दोप नही होता और आलम्बन करने पर महान दोप होता है । मैं अहिंमा मे परे कुछ भी नहीं देखता।
गमस, नाग आदि यज विरोधी थे । पुराणों के अनुसार अमुर आहेत धर्म के अनुयायी हो गए ये। रावण ने भी राजा मरुत को हिंसात्मक यज्ञ से विमुख किया था।
१ महाभारत शान्तिपर्व, अध्याय २४ । १६ ' वही अध्याय २८४ । २१ ३ वही अध्याय २४ । २६-५० । " वही अध्याय २६८, श्लोक ७-१७ ॥ ५ विष्णु पुगण ३ । १७, १८ । त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र पर्व ७, सर्ग २, पत्र ।
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