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गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-ग्रन्थ
बुद्ध और महावीर पूर्णत युक्तिवादी थे। उनका कहना था कि जिस प्रकार जौहरी आग मे तपाकर, काट कर और कसौटी पर कसने के बाद स्वर्ण को ग्रहण करता है, उसी प्रकार हे भिक्षुओ । अच्छी तरह से परीक्षा करने के बाद ही हमारे वचनो को ग्रहण करना, न कि इसलिए कि ये बुद्ध या महावीर के वचन है
तापाच्छेदाच्च निकषात् सुवर्णमिव पण्डित' । परीक्ष्य भिक्षवो प्राह्म मद्रचो न तु गौरवात् ।।
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