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गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-ग्रन्थ
दीपो यथा निवृतिमभ्युपेतो नवानि गच्छति नान्तरिक्षम् । दिश न काञ्चिद् विविश न काञ्चिद् स्नेहमयात् केवलमेति शान्तिम् ॥ तथा कृती निर्वृतिमभ्युपेतो नवानि गच्छति नान्तरिक्षम् । विश न काञ्चिद् विदिशं न काञ्चिद् क्लेशक्षयात् केवलमेति शान्तिम् ॥
-सौन्दरनन्द १६ारम,२९
निर्वाण का मार्ग
जैन दर्शन मे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र को मोक्ष का मार्ग बतलाया गया है'सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि-मोक्ष मार्गः । ये तीनो एक साथ मिलकर मोक्ष के मार्ग है, न कि पृथक पृथक । वौद्ध दर्शन मे अष्टाग मार्ग या मध्यम-मार्ग को निरोध का मार्ग कहा गया है। सम्यग्दृष्टि, सम्यक् सकल्प, सम्यक् वाचा, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् आजीविका, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि-ये मार्ग के आठ अग है । इसके आठ अग होने से इसका नाम अप्टाग-मार्ग है । इसे मध्यम मार्ग भी कहते है, क्योकि बुद्ध ने प्रत्येक वात मे दो अन्तो को छोड़ने का उपदेश दिया था। जैसे अत्यधिक भोजन करना और विल्कुल भोजन न करना-ये भोजन के विषय मे दो अन्त (छोर) है। इन्हे छोडना चाहिए, क्योकि दोनो से ही अहित की सभावना है। अत प्रत्येक विषय मे दो अन्तो को छोडकर मध्यम मार्ग पर चलना चाहिए।
सर्वज्ञ-व्यवस्था
जैन दर्शन के अनुसार ज्ञानावरण कर्म का पूर्ण नाश हो जाने पर एक ऐसा ज्ञान उत्पन्न होता है, जो समस्त द्रव्यो की त्रिकालवर्ती पर्यायो को एक साथ हस्तामलकवत् जानता है । इसे केवल ज्ञान कहते हैं । अत चार धातिया कर्मों के अभाव मे आत्मा सर्वज्ञ हो जाता है । सर्वज्ञ की सिद्धि युक्ति के द्वारा भी की जाती है । सूक्ष्म (परमाणु आदि), अन्तरित (राम, रावणादि) और दूरवर्ती (सुमेरु आदि) पदार्थ किसी के प्रत्यक्ष है, क्योकि वे अनुमेय है। जो अनुमेय होता है, वह किसी के प्रत्यक्ष भी होता है। जैसे पर्वत मे अग्नि । इस अनुमान से सर्वज्ञ की सिद्धि की गई है। यथा
सूक्ष्मान्तरित दूरार्या प्रत्यक्षा. कस्यचिद्यया। अनुमेयत्वतोऽप्रयाविरिति सर्वजसंस्थिति ॥
बौद्ध दर्शन के अनुसार ऐसा कोई सर्वज्ञ नही है, जो सव पदार्थों को एक साथ जानता हो । बुद्ध को ऐसा सर्वज्ञ न मानकर हेय और उपादेय तत्त्वो का ज्ञाता होने से ही प्रमाण माना गया है। स्व-पर कल्याण के लिए जो आवश्यक वाते हैं, उनका ज्ञान होना चाहिए, सारे कीडे-मकोडो के जानने से क्या लाभ है । कोई दूर की बात जाने, या न जाने लेकिन इप्ट तत्त्व को जानना आवश्यक है। यदि दूरदर्शी को प्रमाण माना जाए, तो फिर गृद्धो की भी उपासना करनी चाहिए । तथाहि
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