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गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-प्रन्य प्रभाचन्द, हेमचन्द्र, आदि आचार्यों ने जैन-दर्शन के विकास में महत्वपूर्ण योग दिया है। इन आचार्यों ने इतर दर्शनो के सिद्धान्तो का निराकरण करके अपने सिद्धान्तो का प्रमाण के बल पर व्यापक रूप से समर्थन किया है । भारतीय दर्शन के इतिहास मे जैन-दर्शन का विशेष महत्वपूर्ण स्थान है। भिन्न-भिन्न दार्शनिको ने अपनी-अपनी स्वाभाविक रुचि, परिस्थिति या भावना से जिस वस्तु-तत्व को देखा, उसी को दर्शन के नाम से कहा । लेकिन किसी भी तत्व के विषय में कोई भी तात्विक दृष्टि ऐकान्तिक नहीं हो सकती है। सर्वथा भेदवाद या अभेदवाद, सर्वथा नित्यकान्त या क्षणिककान्त एकान्त दृष्टि है, क्योकि प्रत्येक तत्व अनेक धर्मात्मक है। कोई भी दृष्टि उन अनेक धर्मों का एक साथ प्रतिपादन नही कर सकती है। इस सिद्धान्त को जनदर्शन ने अनेकान्त दर्शन के नाम से कहा है। जैन-दर्शन का मुख्य ध्येय अनेकान्त सिद्धान्त के आधार पर विभिन्न मतो का समन्वय करना है । अत भारतीय दर्शन के विकास को समझने के लिए जैन दर्शन का विशेष महत्व है। बौद्ध दर्शन का प्रारम्भ और विकास
वैदिक दर्शन की परम्परा मे परिस्थिति वश उत्पन्न होने वाली बुराइयो और त्रुटियो को दूर करने के लिए सुधारक के रूप मे महात्मा बुद्ध के द्वारा बौद्ध धर्म का उदय हुआ। और महात्मा बुद्ध के बाद बौद्ध दर्शन का प्रारम्भ हुमा । बुद्ध ने विशेष रूप से धर्म का ही उपदेश दिया था, न कि दर्शन का । अध्यात्म-शास्त्र की गुत्थियो को शुष्क तर्क की सहायता से सुलझाना बुद्ध का उद्देश्य न था, किन्तु दुःखमय ससार से प्राणियो का उद्धार करना ही उनका प्रधान लक्ष्य था। 'बुद्ध' ने देखा कि लोग पारलौकिक जीवन की समस्यामो मे उलझकर ऐहिक जीवन की समस्याओ को भूलते जा रहे है। इसीलिए उन्होंने सरल आचार मार्ग का प्रतिपादन करने के लिए अष्टाग मार्ग (मध्यम मार्ग) का उपदेश दिया। तथा आत्मा और शरीर भिन्न है या अभिन्न ? लोक शाश्वत है या अशाश्वत ? इत्यादि प्रश्नो को अव्याकृत (अकथनीय) वतलाया। बुद्ध ने जिन बातों को अव्याकृत कहकर टाल दिया था, बाद में उनके अनुयायी दार्शनिको ने उन्ही बातो पर विशेष ऊहापोह करके बौद्ध-दर्शन को प्रतिष्ठित किया। वसुबन्धु, नागार्जुन, दिग्नाग, धर्मकीति, प्रज्ञाकर गुप्त आदि आचार्यों ने इतर दर्शनो के सिद्धान्तो का निराकरण पूर्वक स्वसिद्धान्तो का व्यापकरूप से समर्थन किया है । बौद्ध दर्शन ससार के दार्शनिक इतिहास में अपना विशेष स्थान रखता है। जैन-बौद्ध दर्शन में समानता
जैन और बौद्ध दर्शन मे कुछ बातों की अपेक्षा से समानता है तथा अन्य बातो की अपेक्षा से असमानता भी है। समानता सूचक बातें निम्न है
१ दोनो ही दर्शन श्रमण-संस्कृति के अनुयायी है।
२. दोनो ही दर्शन वैदिक क्रियाकाण्ड के विरोधी हैं। बुद्ध और महावीर-दोनो ही समकालीन थे और दोनो ने ही यज्ञो मे विहित क्रियाकाण्डो का विरोध करके समाज को नैतिक पतन से बचाया था।
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