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जैन-बौद्ध दर्शन : एक तुलना
उदयचन्द जैन, एम० ए० (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) ++++++++ +++++++ +++
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दर्शन का अर्थ
मनुष्य विचारशील प्राणी है। वह प्रत्येक कार्य के समय अपनी विचार-शक्ति का उपयोग करता है । इसी विचार-शक्ति को विवेक कहते है। मनुष्य और पशुओ मे भेद भी यही है कि पशुओ की प्रवृत्ति अविवेक पूर्वक होती है और मनुष्य की प्रवृत्ति विवेक पूर्वक होती है । यदि कोई मनुष्य अविवेक पूर्वक प्रवृत्ति करता है, तो उसे नाम से ही मनुष्य कहा जा सकता है, वास्तव मे नही। मनुष्य मे जो विचारशक्ति या विवेक है, उसी का नाम दर्शन है । इस प्रकार प्रत्येक मनुष्य का एक दर्शन होता है, चाहे वह उसे जाने या न जाने । दर्शन हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है, हम उसे अपने जीवन से पृथक् नही कर सकते। दर्शन शब्द की व्युत्पत्ति
_ 'दृश्यतेऽनेन इति दर्शनम्' अर्थात् जिसके द्वारा वस्तु का स्वरूप देखा जाए, वह दर्शन है। यह ससार नित्य है या अनित्य ? इसकी सृष्टि करने वाला कोई है या नही ? आत्मा का स्वरूप क्या है ? इसका पुनर्जन्म होता है या यह इसी शरीर के साथ समाप्त हो जाती है ? ईश्वर की सत्ता है या नहीं ? इत्यादि प्रश्नो का समुचित उत्तर देना दर्शनशास्त्र का काम है। वस्तु के स्वरूप का प्रतिपादन करने से दर्शनशास्त्र वस्तु-परतन्त्र है । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्राचीन ऋषि और महर्पियो ने अपनी तात्त्विक दृष्टि से जिन जिन तथ्यो का साक्षात्कार किया, उनको दर्शन शब्द के द्वारा कहा गया है । यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि यदि दर्शन का अर्थ साक्षात्कार है, तो फिर विभिन्न दर्शनो मे पारस्परिक