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________________ गुरुदेव धी रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ ७. जो एक वस्तु-स्वरूप से वस्तु मे अस्तित्व धर्म का ससर्ग है, वही अन्य धर्मों का भी है । अत ससर्ग' की अपेक्षा से भी सभी धर्मों मे अभेद है। ८. जिस प्रकार 'अस्ति' शब्द अस्तित्व धर्म-युक्त वस्तु का वाचक है, उसी प्रकार 'अस्ति' शब्द अन्य अनन्त धर्मात्मक वस्तु का भी वाचक है। 'सर्वे सर्वार्थवाचका ।' अत शब्द की अपेक्षा से भी अस्तित्व आदि धर्म अभिन्न है। कालादि के द्वारा यह अभेद व्यवस्था पर्याय स्वरूप अर्थ को गौण और गुणपिण्डरूप द्रव्य पदार्थ को प्रधान करने पर सिद्ध हो जाती है । प्रमाण का मूल प्राण-अभेद है । अभेद के बिना प्रमाण की कुछ भी स्वरूप-स्थिति नही है। नय-सप्तभंगी नय वस्तु के किसी एक धर्म को मुख्यरूप मे ग्रहण करता है, वस्तुगत शेष धर्मों के प्रति वह तटस्थ रहता है। न वह उन्हे ग्रहण करता है और न उनका निषेध ही करता है। न हो और न ना. एक मात्र उदासीनता। इसको 'सुनय' कहते है। इसके विपरीत, जो नय अपने विषय का प्रतिपादन करता हुआ दूसरे नयो का खण्डन करता है, उसे 'दुर्नय' कहा जाता है। नय सप्तभगी सुनय मे होती है, दुर्नय मे नही । वस्तु के अनन्त धर्मों में से किसी एक धर्म का काल आदि भेदावच्छेदको द्वारा भेद की प्रधानता अथवा भेद के उपचार से प्रतिपादन करने वाला वाक्य विकलादेश कहलाता है। इसी को 'नय-सप्तभगी' कहते है । नय सप्त भगी मे वस्तु के स्वरूप का प्रतिपादन भेद-मुखेन किया जाता है । नय-सम्बन्धित भेदावच्छेदक कालादि ____नय सप्त भगी मे गुणपिण्डरूप द्रव्य पदार्थ को गौण और पर्याय स्वरूप अर्थ को प्रधान माना जाता है । अत नय सप्त भगी भेद-प्रधान है। उक्त भेद भी कालादि के द्वारा ही प्रमाणित होता है। १ वस्तुगत-गुण प्रत्येक क्षण मे भिन्न-भिन्न रूप से परिणत होते हैं। अत जो अस्तित्व का काल है, वह नास्तित्व आदि का काल नही है। भिन्न-भिन्न धर्मों का भिन्न-भिन्न काल होता है, एक नही । यदि बलात् अनेक गुणो का एक ही काल माना जाए, तो जितने गुण है, उतने ही आश्रयभेद से वस्तु भी होनी चाहिए। इस प्रकार एक वस्तु मे अनेक वस्तु होने का दोष उपस्थित होता है। अत. काल की अपेक्षा वस्तुगत धर्मो मे भेद है, अभेद नही। २ पूर्वोक्त सम्बन्ध और प्रस्तुत संसर्ग में यह अन्तर है कि तादात्म्य सम्बन्ध धर्मों की परस्पर योजना करने वाला है और ससर्ग एक वस्तु मे अशेष धर्मों को ठहराने वाला है। 30
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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