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जैन अग सूत्रों के विशेप विचारणीय कुछ शब्द और प्रसग
है। और न इस गैगी के प्रयोगो से किसी विशेप सिद्धान्त या मान्यता का सम्बन्ध ही जोडना चाहिए। अतएव आगम-साहित्य मे आए "जाणड पासई" अथवा केवल "पासड" जैसे युगल प्रयोग तथा एकाकी प्रयोग का भी इधर कोई विशेप अर्थ लगाना, युक्ति युक्त नही मालूम होता।
प्रस्तुत लेख मे अग सूत्रो के ११ मुददो पर मक्षेप में विचार किया गया है । आगमाभ्यासी या आगम-विशारद श्रमण, थमणी, श्रावक और श्राविकाओ से लेखक का मविनय एव गादर निवेदन है, कि वे उक्त विषयो पर तथा इन्ही जैसे अन्य विपयो पर भी तटस्थ-भाव में विचारणा करे, ताकि आगमाभ्याम का दुरुह मार्ग प्रशस्त हो सके।
लेखक जिज्ञासु है, आगमो का अभ्यामी भी है और भगवान् महावीर के प्रति महामानव के रूप में पूज्यभाव से श्रद्धा भी रखता है । अतएव मूत्रो में उनके अपने अभ्यासकाल में जो-जो बाते विशेप विचारणीय, सशोधनीय एव तटस्थ भाव से चिन्तन करने योग्य प्रतीत हुई, उनमे से कुछ ही वातो पर प्रस्तुत लेख मे चर्चा करने का अवमर मिला है । और भी बहुत मे विचारणीय विषय है, जिनकी चर्चा, सभव है, किसी अन्य प्रसग पर की जा सके।
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