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________________ जन अग सूत्रो के विशेप विचारणीय कुछ शब्द और प्रसग दर्शन ही हुआ, साकार जान नही । यदि प्रस्तुत प्रसग मे केवल अनाकार दर्शन ही मान लिया जाए तो प्रश्न है, कि फिर उन्हे यह सूर्य क्या है । इस प्रकार इदता के रूप मे सूर्य का परिबोध कैसे है ? अर्थात् उन्हे यह सूर्य है, इस प्रकार निश्चित अपाय-अवाय स्वरूप ज्ञान विद्यमान है । अत यहा केवल अनाकार दर्शन मात्र होने की कुछ भी सभावना नही है । उपासकदशा सूत्र मे केवल "पासइ" पाठ का दूसरा प्रसग भी महत्वपूर्ण है । गौतम आनन्द के घर जाने का विचार करते हैं, तब गौतम स्वामी स्वय एक "पासामि" क्रियापद का ही प्रयोग करते है । और जब गौतम अवधिज्ञानी सम्यग्दृष्टि आनन्द श्रावक के पास पहुँचते है, तब आनन्द भी उनको आते देखता है-'पासइ" । केवल "पासई" के उपरि चर्चित दोनो पाठ इस प्रकार है - "त गच्छामि ण आणद समणोवासयं पासामि ।" "भगव गोयम एज्जमाण पासइ।" अत केवल "पासड" से यह अर्थ नही लगाया जा सकता, कि गौतम और आनन्द को केवल अनाकार दर्शन ही हुआ था, ज्ञान नही। ___ आगम साहित्य मे आने वाले "जाणइ पासई" शब्दो का स्वतन्त्र रूप से कोई विशेष अर्थ नहीं है। यदि उनका परस्पर भिन्न कोई विशेष अर्थ होता, तो नन्दी सूत्र मे ऋजुमति और विपुलमति-उभयप्रकारक मन पर्याय ज्ञान के लिए "जाणइ पासई" पाठ कैसे दिया जाता? केवल "जाणइ" पाठ ही होना चाहिए था, "पासइ" नही । क्यो कि जैन-परिभाषा के अनुसार मन पर्याय ज्ञान ही होता है, दर्शन नहीं। "दत्वमओ ण उज्जूमई अणते खधे जाणइ पासइ, ते चैवविउलमई वितिमिरतराए जाणइ पासइ।" -नन्दीसूत्र-सूत्र १८ जैन दर्शन की परिभाषा के अनुसार दर्शन केवल सामान्य सत्ता मात्र का ही ग्राहक होता है, कभी भी विशेषरूप पर्यायो का ग्राहक नहीं होता । फिर भी आगम के कुछ पाठ ऐसे है, जिनमे दर्शन के साथ भी विशेषरूप पर्यायो का सम्बन्ध बताया गया है । "केवलदसण केवलदसणिस्स सव्वदव्वेसु म सव्वपज्जवेसु य ।" -अनुयोग द्वार मूत्र, सूत्र १४४ जब कि जैन परिभापा दर्शन को पर्यायो का ग्राहक मानती ही नहीं है, तब अनुयोग द्वार सूत्र मे यह कैसे कहा गया, कि केवल दर्शनी सब पर्यायो को देखता है। श्रुतज्ञान के लिए भी सब द्रव्यो को जानने और देखने का उल्लेख है - "सुअणाणी उवउत्ते सव्वदन्वाई जाणइ पासइ ।" --नन्दी सूत्र, सूत्र ५८
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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