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जन अग सूत्रो के विशेष विचारणीय कुछ शब्द और प्रसग
"जे इमे पुढविकाइया. एगिदिया जीवा, एएसिणं आणामं वा पाणाम वा उस्सासं वा निस्सासं पा न जाणामो न पासामो।"
-भगवनी सूत्र, शतक २, उद्देशक १ श्री गौतम गणधर छद्मस्थ है । वे उपर्युक्त पाठो मे कहते है, कि द्वीन्द्रिय से लेकर पञ्चेंद्रिय जीवो तक के उच्छ्वास आदि को तो हम जानते है और देखते है, परन्तु पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय जीवो के उच्छ्वास आदि को हम न जानते है और न देख सकते हैं।
"अणगारे ण भते ! भावियप्पा अप्पणो कम्मलेस न जाणइ न पासइ, त पुण जीव सहवि सफम्मलेस जाणइ पास? "हता गोयमा ! अणगारे ण भावियप्पा अप्पणो " जाव " पासति ।"
-भगवती सूत्र शतक १४, उद्देशक र छउमत्थे ण भते ! मासे प्रणतपएसिय खध कि' ... पुच्छा ? "गोयमा! अत्थेगतिए जाणति पासति ।"
-भगवती सूत्र शतक १८ उद्देशक : उवासगदसाओ सूत्र मे छद्मस्थ आनन्द थावक को अवधि ज्ञान होने का वर्णन है, वहा पर भी सर्वत्र "जाणइ पासइ" पाठ ही दिया हुआ है।
"तएण तस्स आणवस्स समणोवासगस्स अन्नयाकयाइ सुभेण अन्झवसाणेण ....'तदावरणिज्जाण कम्माण खमोवसमेण ओहिनाणे समुप्पन्ने-पुरस्थिमेण "खेत्त जाणइ पासइ, एवं दक्खिरणेण पच्चत्थिमेणं य उत्तरेण जाव चुल्लहिमवतं वासचरपव्वय जाणइ पासइ, उड्ढ जाव सोहम्म कप्प जाणइ पासइ, अहे जाव... लोलयच्चुप नरय • "जाणइ पासइ।"
-उवासग दसाओ, प्रथम अध्ययन आनन्द श्रावक जब गणधर गौतम से अपने अवधिज्ञान के सम्बन्ध में बात करता है, तव स्वय भी प्रथम "जाणामि" और पश्चात् "पासामि” क्रिया पदो का क्रमिक प्रयोग करता है -
एव भते ! मम वि गिहिणो गिहमज्झावसतस्स ओहिनाणे समुप्पन्ने-पुरस्थिमेण लवणसमुद्दे पचजोयणसयाइ जाव" नरय नाणामि यासामि ।"
---उवासगदसाओ, प्रथम अध्ययन
उपरिनिर्दिष्ट समस्त पाठो मे छद्मस्थ और केवली दोनो के सम्बन्ध मे प्रश्नोत्तर है और जिस प्रकार केवली के लिए प्रथम 'जाणई और पश्चात् 'पासई' है, उसी प्रकार छद्मस्थ के लिए भी है। यह नही, कि छद्मस्थ के लिए प्रथम "पासइ" और पश्चात् "जाणइ" पाठ दिया हो । यदि आचार्य जिनभद्र गणी की मान्यता के अनुसार आगमकारो का यह अभिमत रहा होता, कि छद्मस्थ को प्रथम दर्शन और
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