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जैन अग सूत्रो के विशेष विचारणीय कुछ शब्द और प्रसग
चूणि व्याख्या-"पुत्त पि ता समारम्भ सिलोगो। अपि पदार्थ सभावने । उक्त हि-'प्राणिनः प्रियतरा पुत्राः । तेन पुत्रम् अपि तावत् समारभ्य, समारम्भो नाम विक्रीय मारयित्वा तन्मांसेन का द्रव्येण वा, किमग पर-पुत्रं शूकर छागल वा आहारार्थ कुर्यात् भक्त भिक्खण? असंजतो णाम भिक्खु-व्यतिरिक्तः स पुनर्, उपासकः अन्यो वा । तं च भिक्षुः त्रिकोटिशुद्ध भुजानोऽपि मेधावी कम्मुणा णो उबलिप्यते । तत्र उदाहरणम्
उपासिकाया भिक्षुः पाहुणो गओ। ताए लावगो मारेऊण ओवक्खडेता तस्स दिण्णो। घरसामिपुच्छा । अहो । णिग्यण त्ति । ताघे तेण भिक्खुणा कृतकशूल कृतम् । मा कप्परेण, हस्ताभ्या गृहीत्वा स्वेदय, मा अङ्गारान् इति । त्वमेव दासे न अहम् । एव मत्कृते घातक एव बध्यते न अहम् ।
-सूत्रकृताग चूर्णि, पृ० ४७, स० श्री पुण्यविजयजी मुनिराज उक्त चूणिव्याख्या का तात्पर्य यह है, कि भिक्ष से भिन्न कोई भी असयत उपासक अथवा अन्य मनुष्य आहार के लिए मानव-पुत्र, शूकर या छाग (बकरा) को खरीद कर मारे और उसका मास बौद्ध भिक्षु को खाने के लिए दे, और वह मेघावी भिक्ष, उस मास को त्रिकोटि-परिशुद्ध मानता हुआ खाए, तो कर्म से लिप्त नहीं होता है । अर्थात् हिंसा का पाप मारने वाले असयत को लगता है त्रिकोटि-परिशुद्ध समझकर मास खाने वाले भिक्षु को नहीं लगता।
उक्त गाथा मे चर्चास्पद वस्तु अनेक है, परन्तु उन सब की चर्चा करने से लेख का कलेवर काफी बढ जाता, अत गाथागत अमुक मुद्दे के सम्बन्ध मे ही कुछ लिखना उपयुक्त रहेगा।
चूर्णिकार द्वारा किए गए गाथा के विवेचन पर से यह फलित होता है, कि-त्रिकोटिशुद्ध-मासभक्षी बौद्ध भिक्षुओ को मास खाने पर भी कर्म-बन्ध नही होता । यह मान्यता सौगत-सम्प्रदाय की है। परन्तु उसकी मान्यता के अनुसार भी मास खरीदने और पकाने वाले उपासक को या अन्य किसी साधारण मनुष्य को तो घातक होने के कारण कर्म-बन्ध होता ही है।
यदि "पुत्त" पाठ रखकर भी उक्त बुद्ध-सम्बन्धित घटना के साथ अर्थ योजना करें, तो इस प्रकार कर सकते हैं । अमरकोश (नानार्थवर्ग २३, श्लो० १८०) मे पोत्र शब्द के दो अर्थ किए हैएक शूकर का मुख और दूसरा कृषि-कर्म मे उपयुक्त खेत जोतने वाले हल का मुख । "मुखाने कोडहलयो.।"
"पोत्रं" का भी प्राकृत मे "पुत्त" उच्चारण होता है । अतः प्रस्तुत गाथा के पुतं' का शूकर का मुखाप-यह अर्थ भी ठीक-ठीक सघटित हो जाता है। } "समारम्भ" पाठान्तर • "आहारेन्ज असंजते"-पाठान्तर १ "-पाठान्तर
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