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गुरुदेव श्री रत्न मुति स्मृति-ग्रन्थ
विभिन्न रूप वालो को भी एक दूसरे का पर्याय माना जाए, तब तो गधा और हाथी भी एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हो सकते है।
विद्वानो को पर्यायवाची प्रकरण के उक्त वैषम्य पर गभीरता से विचार करना चाहिए। अब तक प्रस्तुत वैषम्य का निराकरण करके कोई एक यथार्थ समन्वय स्थापित नही किया जाएगा, तब तक भगवती सूत्र का उक्त पाठ विवादग्रस्त ही बना रहेगा। १०. एक विवादास्पद गाथा
सूत्रकृताग के प्रथम स्कन्धवर्ती समय नामक प्रथम अध्ययन के द्वितीय उद्देशक की २८ वी गाथा बड़ी ही विवादास्पद है । अर्थ काफी उलझा हुआ है । पाठभेद भी कुछ कम नही है । चूर्णि और आचार्य शीलाकृत वृत्ति मे पाठभेद की झलक स्पष्ट है । उक्त गाथा पर सक्षेप में प्रकाश डालने का प्रयत्न किया जा रहा है । चूर्णि का पाठ इस प्रकार है
पुत्त पिता समारभ, आहारट्ठ असजते । भुजमाणो वि मेघावी, कम्मुणा नोवलिप्पते ॥१, १, २, २८
१ आचार्य अभयदेव ने भगवती सूत्र-वृत्ति में उक्त शका का इस प्रकार समाधान किया है-पर्याय
वाची शब्द दो प्रकार के होते हैं, एक तो अर्थ की समानता से और दूसरे व्यञ्जनों की समानता से । अतएव यहां धर्म शब्द के अर्थ को लक्ष्य में रखकर अहिंसा आदि को धर्मास्तिकाय का पर्याय कहा है। यही बात अधर्मास्तिकाय और हिंसा आदि के सम्बन्ध में भी समझ लेनी चाहिए। ये पर्याय भी अधर्म शब्द के अर्थ को लक्ष्य मे रखकर कहे गए हैं। यह समाधान कहा तक सिद्धान्त और तर्क से
सगत है, पाठक स्वय विचार सकते हैं। 'बौद्ध-पिटक साहित्य मे वर्णन है कि भगवान बुद्ध ने सूकरमद्वव खाया था। बौद्ध-ध्याख्याकारों ने सूकर मवव मे के सूकर शब्द को प्राणी वाचक भी माना है । सूकर का अर्थ है-वराह अर्थात् बड़ा
और तगा सूबर । मालूम होता है, उक्त गाथा मे इसी ओर सकेत है। क्योंकि मांस खाने वाले के लिए मेधावी विशेषण दिया है । अतः सभावना है, कि मूल सूत्रकार को यहा भगवान बुद्ध ही विवक्षित हैं।
यदि यह कल्पना अनुचित नहीं है, तो पुत्त शब्द का निम्नोक्त अर्थ संगत प्रतीत होता है। अमरकोश (काण्ड २, श्लो०२ सिंहादिवर्ग) मे शूकर के लिए पोत्रीशब्द का भी उल्लेख है-वराह शूकरः घृष्टिः कोलः पोत्री किरी: किरिः ।" द्वितीया विभक्ति के एक वचन मे पोत्री का प्राकृत उच्चारण "पोति" अथवा "पुत्ति" होता है। अस्तु, यदि हम सूत्रकृतांग सूत्र की उक्त गाथा के "पुत्त" शब्द के स्थान मे "पोति" पाठ की कल्पना करें, तो भगवान बुद्ध की सूकर मद्दव भोजन की वह समग्र घटना प्रस्तुत प्रसग मे निर्दिष्ट है, यह स्पष्ट प्रतिभासित हो जाता है।