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जैन अग सूत्रो के विशेष विचारणीय कुछ शब्द और प्रसग
धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय के जो पर्याय दिए है, वे अवश्य विवादग्रस्त है, पाठक के मन को शकाकुल बना देते है।
धर्मास्तिकाय के पर्यायो मे धम्म, धम्मत्यिकाय, पाणाइवायवेरमण, मुसावायवेरमण, परिग्गहवेरमण , कोहविवेग मिच्छादसण-सल्लविवेग · इरियासमिई " इत्यादि अनेक नाम गिनाए है। उक्त नामो मे प्रथम के दो नाम तो उपयुक्त है, जैन-दर्शन मे सर्वत मुविदित है। परन्तु अहिंसा (प्राणातिपातविरमण), सत्य (मृपावाद विरमण), अपरिग्रह (परिग्रहविरमण) और क्रोध-विवेक आदि अनेक नामो के सम्बन्ध मे प्रश्न होता है, कि धर्मास्तिकाय के साथ इन नामो का क्या सम्बन्ध है ? जैन परिभाषा के अनुसार धर्मास्तिकाय एक तत्व है, पदार्थ है । वह अस्पर्ण है, अस्प है, और समग्र लोक मे व्याप्त है । जिस प्रकार जल मे तैरती हुई मछली के लिए जल तटस्य महायक है, उसी प्रकार लोक व्यापी धर्मास्तिकाय तत्व भी जीव और पुद्गल (जड) पदार्थों की गति-क्रिया मे तटस्थ सहायक होता है । जैन धर्म की सभी परम्पराओ मे धर्मास्तिकाय के सम्बन्ध मे उक्त विचार सर्वसम्मत है।
अब प्रश्न है, कि अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह आदि तो जीवन के सम्यग्स्प है, चैतन्य के गुण है । ये द्रव्य नहीं है, और न लोक-व्यापी ही है । धर्मास्तिकाय द्रव्य और अहिंसा आदि सद्-गुणो का स्वर परस्पर इतना भिन्न है, कि इनमे किमी प्रकार का सम्बन्ध (मेल) ही नहीं बैठ सकता । ऐसी स्थिति मे सूत्रकार ने जो अहिसा सत्य आदि चैतन्य धर्मों को अचेतन धर्मास्तिकाय द्रव्य के पर्याय वाचक शब्द बताए है, यह कैसे सगत हो सकता है ?
जो शका धर्मास्तिकाय के प्रसंग मे है, वही अधर्मास्तिकाय के प्रमग मे उपस्थित है। अधर्मास्तिकाय के पर्याय स्वरूप हिसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह आदि को गिनाया गया है । हिंसा, असत्य आदि दुष्प्रवृत्तिरूप होने से क्रियारूप है । जीवमात्र के लिए अनाचाररूप है, चेतन के विकारी भाव है। और अधर्मास्तिकाय एक अचेतनतत्व है, जड द्रव्य हे, लोकव्यापी है, और जीव एव पुद्गलो की स्थितिक्रिया में वैसे ही तटस्थ सहायक है, जैसे कि विश्रान्त प्रवासी यात्री को वृक्ष की छाया बैठने के लिए तटस्थ निमित्त है । हिंसा आदि अनाचार और अधर्मास्तिकाय जड द्रव्य इन दोनो मे ऐसा कोई भी मेल नही है, जिसके आधार पर हिसा आदि अधर्मास्तिकाय के पर्याय शब्द स्वीकार किए जाएँ ? यदि सर्वथा
जीव के उक्त पर्यायवाची शब्द जीव के साथ तथा जीव की चेष्टा प्रवृत्ति एव स्वरूप आदि के साथ सम्बन्ध रखते है, अत. ये सब निर्विवाद रूप से जीव के पर्याय हो सकते है।
पुद्गल के पर्यायवाची शब्द इस प्रकार हैं-पुद्गल, पुद्गलास्तिकाय, परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशिक पुद्गल, त्रिप्रदेशिक पुद्गल, यावत् असख्येय प्रदेशिक पुद्गल और अनन्त प्रदेशिक पुद्गल।
पुद्गल के उक्त पर्याय सबके सब पुद्गलस्वरूप ही है, अत इन नामो के पुद्गल-पर्याय होने मे भी किसी प्रकार की शका के लिए अवकाश नहीं है।
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