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________________ गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ और तप । साधना की परिपक्व दशा पण्डित कोटि की स्थिति है। इस अवस्था का सयम और तप शुद्धात्मभाव लक्षी होने से वीतराग वृत्ति वाला होता है, अतः उससे निर्वाण भाव की प्राप्ति होती है। सयम और तप के ये पूर्व और पश्चिम विशेषण महत्वपूर्ण है और उनकी अर्थ-सगति उपर्युक्त विचारणा के अनुसार ही ठीक बैठती है। ६. प्राणातिपातविरमण और धर्मास्तिकाय भगवतीसूत्र शतक २०, उद्देशक २ मे धम्मत्थिकाय-धर्मास्तिकाय, अधम्मत्थिकाय-अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय-उक्त पाच अस्तिकायो के पर्याय शब्दो का उल्लेख है। आकाश के पर्याय मूल सूत्र में इस प्रकार बताए गए है-आगास' आगासस्थिकाय, गगण, नभ, सम, विसम, खह, विह, वीथी (वियत्), विवर, अम्बर, अम्बरस, छिड्ड (छिद्र), झसिर (शुषिर), मग, विमुह, अद्द (अब्द अथवा आई) वियद्द, आधार, वोम भायण, अन्तरिक्ख (अन्तरिक्ष), साम, उवासतर (अवकाशान्तर), अगम, फलिह (स्फटिक), अनन्त । इसी प्रकार जीव और पुद्गल के पर्याय वाची शब्दो का भी उल्लेख है। जीव और पुद्गल के पर्यायवाची शब्दो के लिए पाठक के मन मे किसी प्रकार की शका या विवाद नहीं होता। परन्तु ' यास्क के निशक्त मे आकाश के १६ नाम इस प्रकार हैं अम्बरम, वियत्, व्योम, बहि, धन्व, अन्तरिक्षम्, आकाशम, आप., पृथिवी, भू, स्वयम्भः, अध्वा, पुष्करम, सगरः, समुद्रः, अध्वरम् । इनके अतिरिक्त खः, प्रश्नि , नाक, गौ, विष्टपम्, नभ.-इन नामों का भी उल्लेख है। निरक्त-निविष्ट नामो मे से भगवती सूत्र में आए नाम इस प्रकार है-आकाश, नभ, ख, अबर, मग्ग-मार्ग। (निरुक्त मे मार्गवाची अध्वा है)। व्योम, वियत् (मूल मे वीथी है) अद्द (निरक्त मे आपः है) अतरिक्ख-अन्तरिक्ष । भगवती सूत्र में एक "विहे" नाम भी है, सभव है-वह निरुक्त के "बहि" शब्द का ही रूपान्तर हो । भगवती सूत्र मे "अद" है और निरुक्त मे "आप." है। अद का सस्कृतरूप अब्द-मेघ प्रसिद्ध है। मत. अब्द और आपः नाम मे समानता परिलक्षित होती है। भगवती सूत्र का अबरस नाम भी निरुक्तनिर्दिष्ट आपः के अर्थ के साथ मिलता जुलता है। २ जीव, जीवत्थिकाय, प्राण, भूत, सत्त्व, विज्ञ, चेता, जेता, आता, रंगण, हिंडक, पुद्गल, मानव, कर्ता, विकर्ता, जय (जगत), जंतु, योनि, स्वयम्भू, सशरीरी, नायग (शायक) और अन्तरात्मा-ये सब जीव के पर्याय वाची शब्द हैं। १०८
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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