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________________ पूर्व इतिवृत्त भगवान् पार्श्वनाथ वाराणसी के राजकुमार थे। पिता का नाम अश्वसेन और माता का नाम वामादेवी था । आपका जन्म ई० पूर्व ८५० मे, पौष कृष्णा दशमी को हुआ था। आपके युग मे तापस परंपरा के अनेकविध विवेकशून्य क्रियाकाण्डो का प्राबल्य था। गृहस्थ दशा में आपने पचाग्नि-तापस कमठ को अहिंसा धर्म का उपदेश दिया और धूनी के लक्कड़ मे से जलते हुए सर्प का उद्धार किया । मुनि दीक्षा लेने के पश्चात् आपने उग्र साधना की, कैवल्य पाया और विवेक मूलक धर्म साधना का प्रचार कर अन्त मे सम्मेद शिखर (बिहार प्रान्त) पर सदा के लिए अजर, अमर, मुक्त हो गए। ___ पौर्वात्य और पाश्चात्य प्राय सभी विद्वान् आपके ऐतिहासिक अस्तित्व के सम्बन्ध मे एक मत है। बौद्ध साहित्य में भी पार्श्वनाथ के अस्तित्व के मौलिक सकेत हैं । अगुत्तरनिकाय की अट्ठ-कथा के अनुसार गौतम बुद्ध के चाचा बप्प-निर्ग्रन्थ श्रावक थे। सुप्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् धर्मानन्द कौशाम्बी तो कहते हैं कि तथागत बुद्ध ने अपने पूर्व जीवन मे पार्श्वनाथ परपरा का अनुसरण किया था। उत्तराध्ययन, भगवतीसूत्र, कल्प सूत्र आदि मे भगवान् पार्श्वनाथ और उनकी शिष्य परंपरा के प्रचुर उल्लेख मिलते है । स्वयं भगवान् महावीर ने उन्हे पुरुषादानीय कहकर उनके प्रति बहुमान प्रकट किया है । उत्तराध्ययन सूत्र अ० २३-१ मे उनका लोक पूजित, सम्बुद्धात्मा, सर्वज्ञ और लोक-प्रदीप जैसे महत्वपूर्ण विशेषणो से स्मरण किया है। भगवान् महावीर भगवान पार्श्वनाथ के ढाई सौ वर्ष पश्चात् जैन-परपरा के अन्तिम चौबीसवे तीर्थंकर भगवान् महावीर हुए। वर्तमान विहार राज्य के मुजफ्फरपुर जिले मे, जो आज छोटा सा बसाढ नामक गाँव है, वह पहले कभी (ई० पूर्व ६००) इतिहास प्रसिद्ध वैशाली नगरी था । वैशाली मे गणतन्त्र राज्य था, जो लिच्छवी, वज्जी और ज्ञातृ आदि आठ गण राज्यो का सुसगठित सयुक्त गणराज्य था। विदेह गणराज्य से सम्बन्धित चेटक उक्त सयुक्त गणतत्र के मनोनीत अध्यक्ष थे, जो भगवान् महावीर के नाना होते थे। वैशाली के निकट ही क्षत्रियकुण्ड नगर था, जो ज्ञातृ-क्षत्रियगण की राजधानी था । भगवान् महावीर के पिता ज्ञात वंशीय सिद्धार्थ, ज्ञातगण राज्य के प्रमुख थे, जिन्हे राजा भी कहा जाता था। महावीर का जन्म, इसी सिद्धार्थ राजा की रानी त्रिशला के गर्भ से, चैत्र शुक्ला त्रयोदशी की शुभ वेला मे हुआ। वैशाली का वैभव विकास के चरम बिन्दु पर पहुंचा हुआ था। तथागत बुद्ध ने वैशाली-वासियो की तुलना देवताओ से की थी । वैशाली का चातुर्मास समाप्त कर, अन्तिम निर्वाण यात्रा पर जाते हुए बुद्ध ने वैशाली को वापस मुडकर देखा था और कहा था "आनन्द | यह तथागत का अन्तिम वैशाली दर्शन है।" महावीर का बाल्य काल इसी सुख-समृद्धि की स्वर्गापम नगरी वैशाली मे गुजरा। परन्तु उनका चित्त उस राजशाही वैभव मे उलझा नही । तीस वर्ष के कुसुमित यौवन मे उन्होने गृहवास त्याग दिया, निम्रन्थ मुनि बन गए। साढे बारह वर्ष तक लगातार बनो, पर्वतो, नदी-तटो और अनार्य प्रदेशो मे
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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