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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
भगवान ऋपभदेव के भरत, बाहुबली आदि सौ पुत्र थे तथा ब्राह्मी एव सुन्दरी नामक दो कन्याएँ थी। बडे पुत्र भरत, भारत के प्रथम चक्रवर्ती हुए और उन्ही के नाम से भागवतकार की दृष्टि से हमारे देश का नाम भारतवर्ष प्रसिद्ध हुआ।
भगवान् ऋषभदेव का महत्व केवल जैन-परपरा मे ही नही, वैदिक-परपरा में भी उनको विष्णु का अवतार मान कर पूजा की गई है। भागवत के पचम स्कन्ध मे उनकी एक बहुत सुन्दर जीवन-रेखा अकित है। कूर्म, मार्कण्डेय, अग्नि आदि पुराणो मे भी उनकी जीवन-गाथा के कुछ महत्वपूर्ण अशा उपलब्ध हैं । वैदिक विद्वान् प्रो० विरुपाक्ष एम० ए०, वेदतीर्थ और आचार्य विनोवाभावे आदि बहुश्रुत मनीषी ऋग्वेद आदि मे भी ऋषभदेव की वन्दना के स्वर सुनते हैं । इस प्रकार हम देखते है कि भगवान् ऋषभदेव भारत की अति प्राचीन प्रागैतिहासिक काल से चली आने वाली श्रमण और ब्राह्मण दोनो ही सास्कृतिक परम्परामो मे आदि महापुरुष के रूप में मान्य हैं।
सामाजिक क्रान्ति के पश्चात् भगवान् ऋषभदेव ने धर्म-कान्ति का पथ प्रशस्त किया। जैन धर्म के अनुसार भारत की सर्व प्रथम नगरी विनीता (अयोध्या) का विशाल साम्राज्य त्यागकर ऋषभदेव मुनि बन गए, उप्र तपश्चरण किया, वनों मे ध्यान-साधना की, आत्म-दर्शन की भूमिका पर आरुढ होते हुए, केवल ज्ञान प्राप्त किया । अनन्तर भारतवर्ष को भोग से योग की ओर उन्मुख करने के लिए धर्म प्रचार किया और अन्त मे अष्टापद पर्वत पर निर्वाण को प्राप्त हुए।
अरिष्ट नेमि और पार्श्वनाथ
भगवान् ऋषभदेव के पश्चात् अजिवनाय से लेकर पार्श्वनाथ पर्यन्त बाईस तीर्थकर हुए। अर्हन्त अरिष्ट नेमि २२ वें, और पार्श्वनाथ २३ वें तीर्थकर थे। अरिष्ट नेमि यदुकुल में से थे । कृष्ण के पिता वसुदेव और अरिष्टनेमि के पिता समुद्रविजय दोनो सहोदर-सगे भाई थे। मासार्थ मारे जाने वाले प्राणियो की रक्षा के लिए उन्होने उग्रसेन नरेश की सुपुत्री राजीमती के साथ विवाह करने से इन्कार कर दिया। गृह त्याग कर मुनि बन गए, केवल ज्ञान प्राप्त कर अन्त मे रैवताचल (सौराष्ट्र का गिरनार पर्वत) पर मुक्त हुए । आपके द्वारा जन-जीवन मे आहार-शुद्धि का आन्दोलन काफी प्रगतिशील हुआ। मासाहार के विरोध मे आपका करुणा-सन्देश जैन इतिहास में उल्लेखनीय स्थान रखता है । अरिष्टनेमि का वर्णन कल्प-सूत्र, अन्तकृद्दशा आदि जैन-सूत्रो और वैदिक महाभारत' आदि मे है। वेदो के कुछ मन्त्रो मे भी आपके नाम का सकेत है।
'येषा खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठ श्रेष्ठ-गुण आसीद येनेन वर्ष भारतमिति व्यपविशन्ति ।
-भागवत ५,४,६ ५ वनपर्व १४, और शान्तिपर्व २९८, ५-४६ . 'ऋग्वेद १०, ६३, १३