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जैन अग सूत्रो के विशेष विचारणीय कुछ शब्द और प्रसग जैन परम्परा मे १२ चक्रवर्ती माने गए है। उनके नाम प्राचीन आगमो मे तथा जैन ग्रन्थो मे सुप्रसिद्ध है, उनमे विश्वसेन नाम का कोई चक्रवर्ती नही है। यदि "विश्वसेन” चक्रवर्ती का मात्र पर्यायवाची शब्द माना जाए, जैसा कि टीका मे व्युत्पत्ति करते हुए सूचित किया है, तो वह भी सिद्ध नहीं होता। किसी भी कोश मे चक्रवर्ती के लिए विश्वसेन शब्द का पर्यायवाची के रूप मे उल्लेख नहीं है। अमरकोशकार ने "चक्रवर्ती सार्वभौम " (द्वितीय काण्ड, क्षत्रिय वर्ग, श्लो०२) लिखकर चक्रवर्ती के लिए 'चक्रवर्ती और 'सार्वभौम'-इन दो ही शब्दो का उल्लेख किया है। जैनाचार्य हेमचन्द्र ने भी अपने अभिधान चिन्तामणि कोश (मर्त्यकाण्ड ३, श्लो० ३३५) मे चक्रवर्ती के लिए उक्त दो शब्दो को ही पर्यायवाची के रूप मे बताया है। इसके अतिरिक्त आचार्य हेमचन्द्र ने "शेषश्वात्र" कह कर चक्रवर्ती का "अधीश्वर' भी एक पर्याय बताया है-"चक्रवतिनि अधीश्वरः ।" परन्तु विश्वसेन शब्द चक्रवर्ती के लिए कही भी उल्लिखित नही है।
अब प्रश्न है, कि यदि सूत्रकृताग मे निर्दिष्ट 'वीससेण' शब्द चक्रवर्ती का वाचक नहीं है, तो वह फिर किस का वाचक है ? और उक्त शब्द का सस्कृत रूप 'विश्वसेन' ही है या और कोई ? सूत्रकृताग मे जिस प्रकार पहले उपमान रूप से 'महारथ' शब्द शूरवीर योद्धा के लिए आया है, उसी प्रकार यहाँ उपमान रूप से प्रयुक्त 'वीससेण' शब्द भी प्रसिद्ध योद्धा का ही वाचक है । आगमो मे इस प्रकार उपमान उपमेय की शैली से अनेक वर्णन उपलब्ध है। श्रीकृष्ण भारतीय इतिहास मे शूरवीर योद्धा के रूप में सुप्रसिद्ध है। अतः 'वीससेण से कृष्ण अर्थ ही ग्रहण करना चाहिए, चक्रवर्ती अर्थ नही ।
श्रीकृष्ण के लिए, सस्कृत कोशो मे, पर्यायवाची शब्द के रूप में विष्वक्सेन' शब्द सुप्रसिद्ध है, अत 'वीससेण' का मैस्कृत रूप 'विष्वक्सेन' होना चाहिए, न कि 'विश्वसेन' । अमरकोश प्रथम काण्ड, स्वर्ग वर्ग १, श्लो० १९ मे लिखा है-"विश्वक्सेनो जनार्दनः।"
अमर कोश के टीकाकार ने तालव्य शकार से भी "विश्वक्सेन" शब्द की सूचना दी है। जैनाचार्य हेमचन्द्र सूरी ने भी अभिधान चिन्तामणि ( देवकाण्ड २, श्लोक १२८ ) मे "विष्वक्सेननारायणो" लिख कर विष्वक्सेन शब्द को श्री कृष्ण का पर्याय बताया है। आचार्य श्री ने अभिधान चिन्तामणि कोश की अपनी स्वोपज्ञ वृत्ति मे विष्वक्सेन शब्द की व्युत्पत्ति भी दी है-विष्वक् सर्वव्यापिनी विषूची वा सेना अस्य विष्वक्सेनः।"
केवल कोशकार ही नही, भारतीय काव्य साहित्य मे भी कृष्ण के लिए विष्वक्सेन शब्द का प्रचुर प्रयोग हुआ है । उदाहरण के लिए रघुवंश और शिशुपाल वध के कुछ उद्धरण पर्याप्त होगे।
महाकवि कालिदास ने रघुवश (सर्ग १५, श्लो० १०३) मे लिखा हैविष्वक्सेनः स्वतनुमविशत् सर्वलोक-प्रतिष्ठम् ।" महाकवि माघ ने शिशुपाल वध (सर्ग १०, श्लो० ५५) मे कहा है। "साम्यमाप कमलासन विष्वक्सेनसेवितयुगान्तपयोधेः।"
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