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________________ गुरुदेव श्री रल मुनि स्मृति-अन्य रथो यस्य स महारय." इस प्रकार बहुव्रीहि समास के द्वारा "महान् रथ वाला योद्धा" यही अर्थ होता है, फिर भी यह केवल यौगिक रूप में सामान्य योद्धा का वाचक न होकर योगरूढरूप कृष्ण का पर्यायवाची नामान्तर है। यद्यपि कोशो मे महारथ शब्द कृष्ण के पर्यायवाची नामो मे नही मिलता है । परन्तु कविप्रयोग में महारथ का अर्थ कृष्ण मिलता है। माघ आदि काव्य ग्रन्थो मे "महारथ" शब्द कृष्ण के अर्थ मे सुप्रसिद्ध है। महाकवि माघ अपने शिशुपाल बध ( माघ ) नामक महाकाव्य के सर्ग ३, श्लो० २२ मे कहते है: "महारथः पुष्यरथं रथाङ्गी, क्षिप्र क्षपा-नाथ इवाषिरुन।" उक्त श्लोक की टीका मे श्री मल्लिनाथ ने महारय शब्द की व्याख्या करते हुए एक प्राचीन श्लोक उद्धृत किया है - "आत्मान सारपि चान्यान, रक्षन् युध्येत यो नरः स महारथसजः स्यात् इत्याहुर्नीति-कोविदाः।" उपर्युक्त समन प्रमाणो से महारथ पद का अर्थ यहाँ प्रसगतः व्यक्ति विशेष रूप कृष्ण ही सिद्ध होता है, न कि जिसका रथ महान है, ऐसा कोई मात्र सामान्य मानवरूप अर्थ । सूत्र कृताग के प्रस्तुत प्रसग मे स्पष्टत शिशुपाल का उल्लेख है, मत शिशुपाल का प्रतिपक्षी महारथ योद्धा पौराणिक अनुभुति के आधार से कृष्ण के अतिरिक्त दूसरा और कोई नहीं हो सकता। अत यहाँ महारह-महारय शब्द से कृष्ण का ही ग्रहण करना चाहिए। ५. वीस-सेण सूत्रकृताग सूत्र के प्रथम स्कन्धवर्ती बीर स्तुति नामक छठे अध्ययन की २२ वी गाथा मे 'वीससेण' शब्द का उल्लेख है--"जोहेसु नाए नह वीससेणे।" उक्त गाथाश का तात्पर्य है, कि भगवान् महावीर रागद्वेष रूप अन्तरग शत्रुओ के साथ युद्ध करके उन पर विजय प्राप्त करने वाले वैसे ही असाधारण आध्यात्मिक योद्धा थे, जैसे कि समस्त योद्धाओ मे विशेष रूप से ज्ञात-ख्यात-सुप्रसिद्ध "वीससेण" नामक योद्धा । "वीससेण" पद उपमान रूप है और भगवान् महावीर उपमेय रूप है। प्रस्तुत प्रसग मे 'वीससेण' शब्द का सस्कृत रूप क्या होना चाहिए, और वह किस अर्थ का वाचक है, यह विचारणीय है। सूत्रकृताग सूत्र के सुप्रसिद्ध टीकाकार आचार्य शीलाक ने वीससेण का सस्कृत रूप 'विश्वसेन' और उसका अर्थ 'चक्रवर्ती किया है-"योषेषु मध्ये ज्ञातः विदितः दृष्टान्तभूतो वा, विश्वा हस्त्यश्वरथ पदाति चतुरङ्ग बलसेना यस्य स विश्वसेनः चक्रवर्ती यथा मसौ प्रधान.।"
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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