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________________ व्याख्या-साहित्य एक परिशीलन ६. विशेषावश्यक ७. दशवकालिक ८. उत्तराध्ययन ६. ओघ १०. पिण्ड नियुक्तियो की व्याख्या पद्धति बहुत ही गूढ और सक्षिप्त थी। किसी भी विषय का विस्तार से विचार उसमे नही था। अत विस्तार की आवश्यकता ने भाष्यो का आविष्कार किया। नियुक्तियो के गूढ अर्थ को प्रकट करने के लिए आचार्यों ने विस्तृत टीका लिखना आवश्यक समझा। नियुक्तियों के ऊपर जो पद्यात्मक टीकाएँ लिखी गई, वे भाष्य के रूप मे प्रसिद्ध है । भाष्यो की भाषा भी प्राकृत ही है। आवश्यक-सूत्र पर तीन भाष्य है-मूल-भाष्य, भाष्य और विशेषावश्यक भाष्य । प्रथम के दो सक्षेप में है और तीसरा विस्तार मे। भाष्यो का समय लगभग चौथी-पाँचवी शताब्दी माना जाता है। भाष्यो की भाषा प्राञ्जल है। भाष्यकार अनेक हुए है। किन्तु उल्लेख दो भाष्यकारो का ही मिलता है-सघदास गणि और जिन भद्र क्षमा श्रमण । आगम प्रभाकर श्री पुण्य विजय जी के विचारानुसार कम से कम चार भाष्यकार हुए है। उनमे दो का नाम तो उपलब्ध है और शेष दो का उल्लेख नहीं मिलता। पण्डित दलसुख जी निशीथ भाष्य के प्रणेता के रूप मे सिद्धसेन क्षमाश्रमण को मानते है। चूणि-युग चूर्णिकार १. आवश्यक आचार्य जिनदास महत्तर २. आचाराग ३. सूत्रकृताग ४. दशर्वकालिक ५. उत्तराध्ययन ६. नन्दी ७. अनुयोगद्वार ८. व्याख्या-प्रज्ञप्ति ६. जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति १०. जीवाभिगम ११. निशीथ १२. महानिशीथ
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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