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गुरुदेव श्री रत्ल मुनि स्मृति-प्रन्थ
३. उत्तराध्ययन ४. आचाराग ५. सूत्रकृताग ६. दशाधुतस्कन्ध ७. बृहत्कल्प ८. व्यवहार ९. ओघ १०. पिण्ड ११ ऋषिभाषित १२. सूर्य-प्रज्ञप्ति १३. समत्त १४ आराधना १५. गोविन्द
आचार्य गोविन्द
मूल आगमो के अर्थ के स्पष्टीकरण के लिए जो व्याख्या-साहित्य लिखा है, उनमे नियुक्ति सबसे प्राचीन है। जिस प्रकार वैदिक पारिभाषिक शब्दो को विस्तृत करने के लिए महर्षि यास्क ने निघण्टुभाष्य रूप निरुक्त लिखा, उसी प्रकार जैन आगमो के पारिभाषिक शब्दो की व्याख्या करने के लिए भाचार्य भद्रबाहु ने प्राकृत पद्य मे नियुक्तियो की रचना की। किन्तु भद्रबाहु अनेक हुए है। कम से कम दो तो हुए ही है-प्रथम और द्वितीय । कुछ विद्वान प्रथम भद्रबाहु को नियुक्तियो का प्रणेता मानते है तथा कुछ दूसरे को । अभी अनुसन्धान चालू है।
लगभग वल्लभी वाचना के समय-ईसवी पूर्व पांचवी-छठी शताब्दी मे नियुक्तियो की रचना प्रारम्भ हो चुकी थी। क्योकि नय-चक्र के प्रणेता मल्लवादी ने, जो कि विक्रम की पांचवी शती मे थे-अपने ग्रन्थ मे निर्यक्ति गाथा का उद्धरण दिया है।
भाज्य-युग
भाग्य
भाष्यकार
सघदास गणि
१ बृहत्कल्प २. व्यवहार ३. निशीथ ४. पञ्चकल्प ५ जीतकल्प
जिनभद्र क्षमाश्रमण