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________________ व्याख्या-साहित्य : एक परिशीलन ६. तन्दुल वैचारिक ७ देवेन्द्र स्तव ८ गच्छाचार ६. गणि-विद्या १०. मरण-समाधि प्रागम-युग आगमो की भाषा अर्ध मागधी है । जैन अनुश्रुति के अनुसार तीर्थङ्कर अर्घ मागधी में देशना करते है । अत इसको देव-वाणी भी कहा गया है । अर्थ मागधी भापा को बोलने वाला भापार्य कहा जाता है। यह भापा मगध के अर्ध भाग मे बोली जाती थी। इसमे अट्ठारह देशी भापाओ के लक्षण मिश्रित है। महावीर के शिष्य-मगध, मिथिला, काशी, कौशल आदि अनेक देशो के थे । अत आगमो की भापा मे देश्य शब्दो की प्रचुरता है । चूर्णिकार जिनदास महत्तर की व्याख्या के अनुसार गधो और देश्य शब्दो का मिश्रण अर्थ मागधी है। आगम-युग का काल-मान, लगभग विक्रम पूर्व ४७ से प्रारम्भ होकर एक हजार वर्ष तक जाता है । वैसे किसी न किसी रूप मे, आगम-युग की परम्परा वर्तमान मे चल रही है। जैन परम्परा के अनुसार आगमो के प्रणेता अर्थ-रूप मे तीर्यकर और शब्द-रूप मे गणधर होते है । महावीर की वाणी का सार उनके गणधरो ने शब्द-बद्ध किया। फलत अर्थागम के प्रणेता तीर्थड्र और शब्दागम के प्रणेता गणधर । परन्तु आगमो का प्रामाण्य गणधरकृत होने से नहीं, अपितु तीर्थङ्कर वाणी होने से माना जाता है। आगमो की संख्या कितनी है ? इस विषय मे एक मत नहीं है। आगमो की संख्या के सम्बन्ध मे इस प्रकार की धारणा है-८४, ४५, ३२ । ___आगमो मे धर्मद, शन, संस्कृति, तत्त्व, गणित, ज्योतिष, खगोल भूगोल और इतिहास-सभी प्रकार के विपय यथाप्रसग आ जाते है। फिर भी मुख्यता, धर्म, दर्शन, संस्कृति, साधना और तत्त्व की रहती है । अध्यात्म-चाद आगमो मे सर्वत्र व्याप्त है। आगमो मे सर्वत्र जीवन-स्पर्शी विचारो का प्रवाह परिलक्षित होता है। विचार और आचार के जो मूल तत्त्व आगमो मे है, नियुक्ति, भाप्य, चूणि और टीका ग्रन्थो मे उन्ही का विस्तार आचार्यों ने अपने-अपने युग की आवश्यकताओ के अनुसार किया है। नियुक्ति-युग नियुक्ति नियुक्तिकार १ आवश्यक आचार्य भद्रबाह २. दशवकालिक
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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