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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
प्रलम्ब सूरि
१३ वृहत्कल्प १४. व्यवहार १५. दशा श्रुत स्कन्ध १६. जीत कल्प १७. पञ्च कल्प १८ ओघ
सिद्धसेन सूरि
नियुक्ति और भाग्य की भांति चूणि भी आगमो की व्याख्या है। परन्तु यह पद्य मे न होकर गद्य मे होती है और केवल प्राकृत मे न होकर प्राकृत एव सस्कृत दोनो मे होती है। अधिकता प्राकृत की होती है । चूर्णि की भाषा सरल और सुबोध्य होती है।
चूणियो का समय अभी पूर्णतया स्थिर नही हो पाया है। परन्तु इतिहासकार प्रसिद्ध चूर्णिकार आचार्य जिनदास महत्तर का समय छठी शताब्दी के आस-पास मानते है। चूर्णिकारो मे सिद्धसेन सूरि और प्रलम्ब सूरि का भी उल्लेख मिलता है । परन्तु शेप का नही मिलता है।
प्रागमो के कुछ विशिष्ट शब्द
शब्द
अर्थ
विष्णू
अतिविज्ज सागारिक
हुरत्था
खद्ध-खद्ध वियड
विह
णीहट्ट
विद्वान अति विद्वान मैथुन अन्यत्र शीघ्र-शीघ्र प्रासुक जल मार्ग निकाल कर माया कही पर विभज्यवाद-स्याद्वाद साधु गृहस्थ शरीर वचन व्यायाम-शाला
णूम कण्हुई विभज्जवाय वुसी गारथ बोदि वग्गू अट्टण-साला
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