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________________ व्याख्या-साहित्य एक परिशीलन हिन्दी अनुवाद हिन्दी अनुवाद के क्षेत्र में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और गौरवमय कार्य पूज्य श्री अमोलक ऋषि जी महाराज ने किया है । बत्तीस आगमो का अनुवाद कर डालना, कोई साधारण बात नही है । और वह भी आज की अपेक्षा उस साधन-हीन युग मे वस्तुत बहुत बड़ी बात है। आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज तो आगमो के एक सुप्रसिद्ध अनुवादक और व्याख्याकार थे। स्थानकवासी समाज के आप एक युगान्तरकारी व्यक्ति थे । अनेक आगमो पर आपने विशद व्याख्याएं प्रस्तुत की है। आप के द्वारा व्याख्यात उत्तराध्ययन सूत्र, दशवैकालिक-सूत्र, अनुत्तरोपपातिक सूत्र और अनुयोगद्वार सूत्र समाज मे प्रभूत प्रचारित और सर्वप्रिय प्रकाशन है। आप की श्रुत सेवा समाज का गौरव है। आपके शिष्य पण्डित ज्ञान मुनि जी ने विपाक-सूत्र का विस्तृत हिन्दी विवेचन प्रस्तुत किया है । आपके द्वारा सम्पादित आगम सर्व-प्रिय है। , पूज्य श्री घासीलाल जी महाराज ने बडी महत्वपूर्ण आगम सेवा की है । आपके द्वारा लगभग बीस आगमो का प्रकाशन हो चुका है। आपने उन पर स्वतन्त्र रूप से संस्कृत टीका की है । स्थानकवासी परम्परा मे आप सर्व प्रथम सस्कृत टीकाकार है । आपकी श्रुत-सेवा प्रशसनीय है। मरुधर-धरा के ज्योतिर्धर आचार्य श्री जवाहरलाल जी महाराज की देख-रेख मे सूत्रकृताग की आचार्य शीलाक कृत टीका का हिन्दी अनुवाद हुआ है। इसका प्रकाशन चार भागो मे हुआ है। प्रथम भाग मे मूल और टीका-दोनो का हिन्दी अनुवाद हुआ है। बाद के तीन भागो मे केवल मूल मात्र का हिन्दी अनुवाद किया गया है। उपाध्याय हस्तीमल जी महाराज ने अनेक आगमो का अनुवाद किया है। दशवकालिक सूत्र का, नन्दी सूत्र का और प्रश्नव्याकरण का हिन्दी अनुवाद और सम्पादन किया है । बृहत्कल्प सूत्र की एक लघु टीका का भी प्रकाशन किया है। प्रसिद्ध वक्ता पण्डित सौभाग्यमल जी महाराज ने पूर्व आचाराग-सूत्र का हिन्दी अनुवाद और हिन्दी विवेचन प्रकाशित किया है। उपाध्याय श्री अमर चन्द्र जी महाराज ने सामायिक-सूत्र और श्रमण-सूत्र पर हिन्दी भाषा मे विस्तृत भाष्य लिखा है। दोनो ग्रन्थ आगम-साहित्य की सेवा मे अपना विशिष्ट स्थान रखते है। भाव, भाषा और शैली सभी दृष्टि से उक्त दोनो ग्रन्थ बहुत ही लोकप्रिय सिद्ध हुए हैं। सन्मति ज्ञान पीठ से अनुत्तरोपपातिक सूत्र का एक बहुत सुन्दर प्रकाशन हुआ है, जिसमे विस्तृत भूमिका, हिन्दी अनुवाद और हिन्दी टिप्पण है, जिसका सम्पादन विजय मुनि जी ने किया है।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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