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________________ व्याख्या साहित्य एक परिशीलन अन्य ग्रन्थो पर भी इनकी टीकाएँ उपलब्ध है। आपकी विपुल ग्रन्थ-राशि सस्कृत और प्राकृत दोनो भाषाओ मे है। दोनो भाषाओ पर आपका असाधारण अधिकार था। हरिभद्र के बारे मे आचार्य शीलाक ने सस्कृत टीकाएँ लिखी। आचाराग और सूत्रकृताग पर आपकी विस्तृत और महत्त्वपूर्ण टीकाएँ है, जिनमे दार्शनिकता की प्रधानता है। आपने सूत्रकृताग-टीका मे भूतवाद और ब्रह्मवाद की बहुत ही गम्भीर समीक्षा की है। भापा प्राञ्जल और भावो की गम्भीरता है। शान्तिसूरि ने उत्तराध्ययन पर अत्यन्त विस्तृत टीका लिखी है। यह प्राकृत और सस्कृत दोनो मे है। परन्तु प्राकृत को प्रधानता है। अत इसका नाम पाइय टीका प्रसिद्ध है। इसमे धर्म और दर्शन का अतिसूक्ष्म विवेचन हुआ है। मलधारी हेमचन्द्र भी प्रसिद्ध टीकाकार है । इन्होने विशेपावश्यक भाष्य पर विस्तृत संस्कृत वृत्ति लिखी है । यह एक महत्त्वपूर्ण और गम्भीर टीका है। विशेषावश्यक भाष्य पर कोटयाचार्य की टीका भी बहुत प्रसिद्ध है। सस्कृत टीकाकारो मे सबसे विशिष्ट स्थान आचार्य मलयगिरि का है । मलयगिरि वस्तुत टीकासाहित्य मे महागिरि के तुल्य है। इनकी टीकाओ मे भाव गम्भीर, भापा प्राञ्जल और शैली प्रौढ है । जिस किसी भी आगम पर अथवा ग्रन्थ पर टीका की, उसमे वह तन्मय हो गए। जिस प्रकार वैदिक परम्परा मे वाचस्पति मिश्र ने षड्दर्शनो पर प्राञ्जल भाषा मे और प्रौढ शैली मे विशद टीकाएँ लिखकर आदर्श उपस्थित किया है, ठीक वैसा ही आदर्श जन-साहित्य मे आचार्य मलयगिरि ने किया है। दर्शनशास्त्र के तो आप विशाल और विराट विद्वान थे। विभिन्न दर्शन-शास्त्रो का जैसा और जितना गम्भीर विवेचन एव विश्लेषण आपको टीकाओ मे हो सका , वैसा और उतना अन्यत्र कही पर भी न मिल सकेगा । आचार्य मलयगिरि अपने युग के महान् तत्त्व-चिन्तक, महान् टीकाकार और महान व्याख्याता थे। आगमो के गुरु-गम्भीर भावो को तर्क-पूर्ण शैली मे उपस्थित करने की आप मे अद्भुत क्षमता, योग्यता और कला थी। अत आचार्य मलयगिरि एक सफल टीकाकार थे। आगमो के टीकाकारो मे अभयदेव सूरि भी एक सुप्रसिद्ध टीकाकार है । अभय देव सूरि को नवागी वृत्तिकार कहा जाता है। अभयदेव का स्थान जैन-साहित्य मे वडा ही गौरवपूर्ण है, जिन्होने नव अङ्गो पर टीका लिखकर, विलुप्त होते हुए श्रुत की सरक्षा करके, एक महान कार्य किया था। इनकी टीकाएँ अधिक विस्तृत नहीं है, मूल से अधिक निकट है। परन्तु बहुत से स्थलो पर गहन-गम्भीर विचारणा भी उपलब्ध हो जाती है। आचार्य ने नव-अङ्ग सूत्रो पर टीका लिखकर, वस्तुत महती श्रुत-सेवा की है। समस्त टीकाओ का विस्तृत परिचय देना, यहाँ सम्भव नहीं है। क्योकि यह विषय बहुत विस्तृत
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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