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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ यह एक भाग है। इसमे पाँच प्रकार के कल्पो का अर्थात् आचारो का वर्णन है। इस पर एक भाष्य भी लिखा गया है , जिसके प्रणेता आचार्य सघदास गणि है । इस पर नियुक्ति भी है । एक चूणि भी इस पर लिखी गई है।
चूर्णियो मे अभी तक बहुत-सी अनुपलब्ध है, कुछ अभी तक प्रकाशित नही हो सकी है, कुछ का प्रकाशन हो रहा है। निशीथ चूणि का प्रकाशन अभी सन्मति ज्ञानपीठ आगरा से हुआ है, जिसका सम्पादन उपाध्याय श्री अमरचन्द्र जी महाराज ने बडे श्रम से किया है। इसका प्रकाशन चार भागो मे हुआ है, जिसमे मूल सूत्र, उसकी नियुक्ति, उसका भाष्य और उसकी विशेष चूणि भी है । अगस्त्य सिंह सूरी की चूणि का प्रकाशन भी होने वाला है। श्री पुण्यविजय जी इसका प्रकाशन कर रहे है। भण्डारो के अनुसन्धान से भी बहुत-सा प्राचीन साहित्य प्रकट हो रहा है।
टीका-परिचय
प्राकृत-युग मे मूल आगम, नियुक्ति और भाष्यो का गुम्फन हुआ। चूणि-युग मे प्रधानता प्राकृत की होने पर भी उसमे सस्कृत का प्रवेश हो चुका था। टीकाएँ सस्कृत-युग की कृतियाँ है। आगम-साहित्य मे चूणि-युग के बाद में संस्कृत टीकाओ का युग आया । टीका के अर्थ मे इतने शब्दो का प्रयोग होता रहा है-नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, विवृत्ति, वृत्ति, विवरण, विवेचना, अवचूरि, अवचूर्णि, दीपिका, व्याख्या, पञ्जिका, विभाषा और छाया।
संस्कृत टीका-युग जैन-साहित्य में एक स्वर्णिम युग कहा जा सकता है । इस युग मे केवल आगमो पर ही टीकाएं नहीं लिखी गई, अपितु आगमो की नियुक्तियो पर और भाष्यो पर भी टीकाएँ लिखी गई, बल्कि टीकाओ पर भी टीकाएँ हुई। इस दृष्टि से टीका-युग साहित्य की समृद्धि का युग कहा जा सकता है।
मूल आगमो के नियुक्ति-युग मे केवल आगमो के शब्दो की व्याख्या अथवा व्युत्पत्ति हो पाई थी। आगे भाष्य-युग मे भावो का विवेचन प्रारम्भ हुआ। वह बडे विस्तार के साथ में किया गया। चूणि-युग मे गूढ-भावो को लोक-कथाओ के आधार पर समझाने की कला का प्रयोग किया गया । परन्तु टीका-युग मे आगमो की दार्शनिक व्याख्या का युग प्रारम्भ होता है। अत सस्कृत टीकाओ मे दार्शनिक विश्लेषण
और विवेचन अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है। इस युग मे सक्षिप्त और विस्तृत सभी प्रकार की टीकाएँ लिखी गई । अत विकास की दृष्टि से टीका-युग बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। प्रसिद्ध टीकाकार
जन-साहित्य मे पूर्णि-युग के बाद मे संस्कृत टीकाओ का युग आया। सस्कृत टीकाकारो मे आचार्य हरिभद्र का नाम उल्लेखनीय है। इन्होने प्राकृत चूणियो के आधार से टीका को। आगमो के अतिरिक्त