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व्याख्या-साहित्य एक परिशीलन
गोशालक अनुयायी। शाक्य का अर्थ है-बौद्ध भिक्षु। तापस और गैरिक-इनका भी कभी सम्प्रदाय रहा होगा।
___ दृष्टिवाद को उत्तमश्रुत बताते हुए कहा है, कि द्रव्यानुयोग-चरणानुयोग, धर्मकथानुयोग और गणितानुयोग का वर्णन होने से यह श्रुत सर्वोत्तम है। इसके अतिरिक्त इस मे जोणि-पाहुड का भी उल्लेख है । इसमे मन्त्र-विद्या का वर्णन है। तरगवती, मलयवती, धूर्ताख्यान और वसुदेव चरित्र आदि ग्रन्थो का उल्लेख है। महानिशीथ-चूणि
महानिशीथ की गणना छेदसूत्रो मे की जाती है। यह उपलब्ध नही था। इसमे छह अध्ययन और दो चूलाएं थी। कहा जाता है, कि बाद मे हरिभद्र सूरि ने इसका अनुसंधान किया। वृद्धवादी, सिद्धसेन और देवगुप्त आदि आचार्यों ने इसे मान्य किया । इस पर भी किसी ने चूणि लिखी थी। बृहत्कल्प-चूणि ____ कल्प अथवा बृहत्कल्प को कल्पाध्ययन भी कहा गया है। साधु-जीवन का यह एक प्रसिद्ध आचार-शास्त्र है। कल्प शब्द का अर्थ भी आचार किया जाता है। इसका विस्तार बहुत है। इस पर नियुक्ति, भाष्य और टीकाएँ लिखी गई है । इस पर एक चूणि भी लिखी गई थी। व्यवहार-चूर्णि
___ व्यवहार चूणि को द्वादशाग का नवनीत अथवा सार कहा गया है । निशीथ और कल्प के समान यह भी छेदसूत्र है। इसमे भी साधु के आचार का वर्णन है । इस पर नियुक्ति, भाष्य और टीकाएं है। व्यवहार पर एक चूर्णि भी लिखी गई थी। जीतकल्प-चूर्णि
जीतकल्प सूत्र की गणना छेदो मे की जाती है। इसमे साधुमो के पाँच व्यवहारो का विवेचन किया गया है। विशेषत दवा प्रकार के प्रायश्चित्तो का विस्तार के साथ वर्णन किया है। इसके प्रणेता जिनभद्र क्षमाश्रमण है। स्वय ने इस पर भाप्य भी लिखा है। आचार्य सिद्धसेन ने इस पर एक चूणि लिखी है। उस पर चन्द्रसूरि ने विपम पद टीका लिखी है। इसकी चूणि मे सिद्धसेन ने दश प्रकार के प्रायश्चित्तो का बहुत अच्छा विवेचन किया है । चूणि की भापा सुबोध्य और मधुर है। पञ्चकल्प-चूणि
पञ्चकल्प की गणना भी छेद सूत्रो में की जाती है। कहा जाता है, कि बृहत्कल्प भाप्य का ही